नई कीटनाशक प्रबंधन विधेयक (PMB) पर्यावरण और जनता के लिए नुकसानदेह पर कारोबारियों के लिए फायदेमंद

2008 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने दशकों पुराने कीटनाशक प्रबंधन कानून को बदलने के लिए एक विधेयक तैयार किया था.

सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 2017 में मसौदे को अपडेट किया और सार्वजनिक चर्चा आमंत्रित की. सरकार ने मसौदे को दुबारा से तैयार करने और कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 (पीएमबी) नाम से नया संस्करण जारी करने में तीन साल और लगा दिए.

कैबिनेट ने फरवरी 2020 में पीएमबी को मंजूरी दी और अगले महीने सरकार ने इसे राज्य सभा में पेश किया. एक साल बाद जुलाई 2021 में कीटनाशक उद्योग की इस आलोचना के जवाब में बिल को कृषि पर बनी संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा दिया गया कि यह अतिरेक है जो संभावित विकास को अवरोध करेगा.

स्थायी समिति ने दिसंबर 2021 में अपनी रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में लीपापोती अधिक है. हालांकि इसमें कुछ अच्छी सिफारिशें भी हैं लेकिन बड़े पैमाने पर कई गंभीर खामियों पर कोई बात नहीं की गई है. इस बीच, नागरिक-समाज संगठनों ने कहा कि लोगों और पर्यावरण की रक्षा के लिए पीएमबी अभी भी काफी कमजोर है.

भारत में कृषि, निर्माण और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में इस्तेमाल के लिए कीटनाशकों को केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति में पंजीकृत किया जाता है.

यदि कोई निर्माता कृषि उपयोग के लिए कोई कीटनाशक पंजीकृत कराना चाहता है तो उसे बताना होता है कि कीटनाशक किस फसल के लिए उपयुक्त होगा तथा किस कीट पर यह असर करेगा, प्रति इकाई क्षेत्र में कितना कीटनाशक प्रयोग करना होगा, उपयोग से पहले कीटनाशक को कितना पतला करना होगा और छिड़काव किए गए खेतों में फैला जहर कम हो जाए, इसके लिए दो छिड़कावों के बीच कितने समय का अंतराल रखा जाना चाहिए.ये सारे दिशानिर्देश देना जरूरी होता है.

कीटनाशकों पर वर्तमान विधाई ढांचे(कानून) की एक बड़ी खामी यह है कि यह खेतीहर समुदाय के लिए सुरक्षा मानकों को निर्धारित नहीं करता है जबकि खेतीहर ही कीटनाशकों का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है.

कानूनी रूप से तो यह भी जरूरी  है कि किसानों और खेतीहर मजदूरों को जहरीले उत्पादों का सुरक्षित रूप से उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए. 2017 में सरकार ने कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की मांग के मामले में सुप्रीम कोर्ट को दिए एक हलफनामे में कहा था कि कीटनाशक कानूनों के एक प्रावधान में मजदूरों के प्रशिक्षण से संबंधित जो बात कही गई है वह “किसानों को प्रशिक्षण देने के संदर्भ में नहीं है बल्कि निर्माताओं या वितरकों या कीट नियंत्रक ऑपरेटरों के साथ काम करने वाले मजदूरों के लिए” है.

सरकार के ऐसे जवाब से यह संदेह पैदा होता है कि क्या सरकार किसानों और खेतिहर मजदूरों को प्रमुख कीटनाशक उपयोगकर्ता नहीं मानती है? इससे यह सवाल भी उठता है क्या सरकार किसानों द्वारा कीटनाशकों के इस्तेमाल को अवैध मानती है और क्या यह उन्हें अनुमोदित उपयोग के उल्लंघन के लिए या उपभोक्ताओं या पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए गलत तरीके से उत्तरदायी ठहरा सकती है? पीएमबी खेतीहर मजदूरों का जिक्र न कर इन अनिश्चितताओं को बरकरार रखना चाहती है.

कीटनाशक प्रबंधन पर अंतर्राष्ट्रीय आचार संहिता में विशेष रूप से यह कहा गया है कि “सरकारों को स्थानीय जरूरतों, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों, साक्षरता के स्तर, जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप उपयुक्त कीटनाशक आवेदन की उपलब्धता और सामर्थ्य और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण जैसे कारकों का पूरा ध्यान रखना चाहिए.” 

कीटनाशक नियम यह निर्धारित करते हैं कि कीटनाशकों का उपयोग करते समय उपयोगकर्ता को हानिकारक रसायनों के संपर्क में आने से रोकने में सक्षम सामग्री से बने पर्याप्त बाहरी वस्त्र, चोगा, हुड, टोपी, रबर के दस्ताने, धूल-प्रूफ चश्मे, जूते और श्वसन मास्क जैसे सुरक्षात्मक उपकरण प्रयोग करने चाहिए. लेकिन अधिकांश किसान ऐसे उपकरणों का खर्चा नहीं उठा सकते या यह उनकी पहुंच से बाहर हैं.

पीएमबी कानून में एक अजीब और खतरनाक धारा है जो 2017 के मसौदे या कीटनाशक अधिनियम का हिस्सा नहीं है. कानून की धारा 56(1) में कहा गया है कि “कोई भी व्यक्ति जो अपने घर, किचन गार्डन या अपनी खेती के तहत कीटनाशकों का उपयोग करता है, इस अधिनियम के तहत किसी भी अपराध के लिए मुकदमा चलाने का उत्तरदायी नहीं होगा.”

भारत में प्रतिबंधित कीटनाशकों का व्यापक उपयोग होता है और इसके काफी सबूत मिले हैं. इस तरह देखा जाए तो नई कीटनाशक प्रबंधन कानून /विधेयक पर्यावरण और जनता हितैषी नही है. कारोबारियों के लिए यह कानून लाभदायक है.

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