नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स के चौथे राउन्ड की रिपोर्ट में बिहार की चिकित्सा व्यवस्था की रैंकिंग यथावत है. यथावत अर्थात बिहार में चिकित्सा व्यवस्था पहले भी फिसड्डी थी और अभी भी फिसड्डी ही है.
इस रिपोर्ट में बिहार की रैंकिंग नीचे से दूसरे नंबर पर है. पिछले वर्ष की तुलना में 0.76 अंक की मामूली बढ़त के साथ बिहार लार्जर स्टेट्स की श्रेणी में 19 राज्यों में 18वें नंबर पर बना हुआ है.
सूबे की नीतीश सरकार बिहार में लगातार विकास के बड़े दावे करते नजर आती है लेकिन नीति आयोग की रेपोर्ट्स से ये सारे दावे खोखले हो रहे हैं. मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों ने सवालों से बचने और जिम्मेवारी ना लेने की एक अजीब-सी प्रक्रिया अपनाई है. इनके द्वारा हर उस रिपोर्ट को नकार दिया जाता है जिसमें बिहार की बदहाल स्थिति का खुलासा हो रहा हो.

चिकित्सा में सबसे निम्न स्तर
बड़े राज्यों की श्रेणी में 19 राज्य शामिल थे जिसके वर्गीकरण में बिहार को सबसे निचले वर्ग में रखा गया है. इसका अर्थ है कि 2005 के बाद से लगातार नीतीश के नेतृत्व में चल रही बिहार सरकार चिकित्सा व्यवस्था में कोई भी सुधार नहीं कर पाई है.

बिहार में चिकित्सा व्यवस्था की फटेहाल अवस्था को हाल-फिलहाल की घटनाओं से भी समझा जा सकता है. अभी हाल में उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में 65 लोगों की आँखों का ऑपरेशन हुआ था और सभी की आँखों में इन्फेक्शन हो गया. 20 से 30 लोगों की आँखें भी निकालनी पड़ी.
सूबे के मुख्यमंत्री नीति आयोग की रिपोर्ट को भले ही नकार दें लेकिन बिहार की चिकित्सा व्यवस्था को फटेहाल साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. अभी 6 महीने पहले ही जब नीतीश कुमार को अपनी आँखों के मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाना था तो उन्होंने बिहार से दिल्ली का रुख किया था.
उत्तर बिहार में प्रत्येक साल चमकी बुखार से सैकड़ों बच्चों की जान चली जाती है. इसके बावजूद क्या अब भी नीतीश कुमार नीति आयोग की इस रिपोर्ट को नकार देंगे?