नीतीश सरकार की विशेष राज्य के दर्जे की ‘मांग’ या ‘राजनीति’?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग करते रहते हैं. 14 फ़रवरी उन्होंने कहा कि यह कोई व्यक्तिगत विचार नहीं है, बल्कि यह जनहित में है और राज्य के हित में है.

नीतीश कुमार के अनुसार, ‘विशेष राज्य के दर्जे के लिए बड़ा अभियान चलाया गया है. कई जगहों पर सभाएं हुई हैं. बैठकें हुईं हैं.’ इधर ज्ञात हो कि नीति आयोग की रिपोर्ट में भी बिहार को सबसे पिछड़ा बताया गया है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने से यही फायदा होगा कि केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 90:10 के अनुपात में होगी. अभी 60:40, तो कहीं–कहीं 50:50 है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि, ‘अगर बिहार पीछे है, तो उसका कारण क्षेत्रफल की तुलना में आबादी का अधिक होना है. एक वर्ग किमी में जितनी आबादी बिहार में है, उतनी आबादी इस देश में कहीं भी नहीं है और शायद दुनिया में भी कहीं नहीं है.’

अब सवाल उठता है कि नीतीश कुमार क्या सच में चाहते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले या वे सिर्फ राजनीती कर रहे हैं?

विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्य में प्रति व्यक्ति आय (2019-2020)

सिक्किम – 4,87,201रु
उत्तराखंड – 2,26,144 रु
हिमाचल प्रदेश – 2,25,839 रु
मिज़ोरम – 2,21,380 रु
अरुणाचल प्रदेश – 1,81,185 रु
नागालैंड – 1,47,309 रु
त्रिपुरा – 1,39,512 रु
मेघालय – 1,02,672 रु
असम – 1,01,851 रु
मणिपुर- 92,430 रु

अगर भारत के इन विशेष राज्यों में प्रति व्यक्ति आय देखें तो उसके मुकाबले बिहार की प्रति व्यक्ति आय बेहद कम है. 2019-20 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय 50,735 रही है. जाहिर है प्रति व्यक्ति आय के अनुसार बिहार की प्रति व्यक्ति आय विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त अन्य राज्यों से काफी कम है. इस नाते नितीश कुमार लगातार ये मुद्दा उठाते रहते हैं. मगर भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद तथा देश में उनके सहयोगी की सरकार होने के बावजूद अब तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिल पाया है?

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