बिहार में वर्तमान समय में लगभग पूरी पुलिस फोर्स को सिर्फ एक ही काम दिया गया है- शराब पकड़ना. बिहार की पुलिस इसमें दिलचस्पी भी रखती है क्योंकि शराब पकड़ाने पर मोटी कमाई होती है. शराबबंदी वाले राज्य बिहार में शराबियों पर नजर रखने के लिए 10 एडीजी और 2 आईजी की ड्यूटी लगाई है. जिसमें आतंकवादी निरोधी दस्ते के प्रमुख भी शामिल हैं. लेकिन क्या वाकई ही बिहार में शराबबंदी है?
आपको याद होगा ही कुछ दिन पहले ही जब मुख्यमंत्री सचिवालय में नीतीश कुमार शराबबंदी कानून की समीक्षा कर रहे थे तब ठीक उस परिसर के बाहर और बिहार विधानसभा सत्र के दौरान परिसर में शराब की बोतले पाई गई थी. जिसके चलते सदन में हंगामा मच गया था. जहां पर शराबबंदी का संकल्प लिया गया था वहीं पर शराब निकलने से विपक्ष के नेताओं ने भी नीतीश सरकार पर तंज कसते हुए कहा था कि नितीश को इस्तीफा दे देना चाहिए.
खुद मुख्यमंत्री ने शराब पीने की आदत लगाई?
जहरीली शराब से अब तक लगभग 60 लोगों की मौत हो चुकी है जो शराबबंदी कानून की पोल खोलती है. इस कानून की विफलता की तह में जाएं तो हमें पता चलेगा कि पूरे बिहार को खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराब पीने की आदत लगाई.
सरकारी आँकड़ों की मानें तो बिहार में 2002-03 में शराब की 3,095 दुकानें थीं जो 2013-14 तक बढ़कर 5,467 हो गई. सबसे ज्यादा शराब की दुकानें ग्रामीण क्षेत्रों में खुली जिनकी संख्या 779 से बढ़कर तीन गुनी ज्यादा 2,360 हो गई. नीतीश सरकार ने हर पंचायत में टेंडर दे-दे कर शराब की दुकानें खुलवाई. और जब गांव की अधिकांश आबादी शराब के नशे में डूब चुकी थी तब अप्रैल 2016 में बिहार में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की गई. तो क्यों न कहा जाए कि नीतीश सरकार ने ही लोगों को शराब ने नशे में धकेला.
अब नीतीश सरकार अपने अंक बढ़ाने के लिए ऐसे काम कर रही है जैसे बिहार की पुलिस का अब एक ही काम रह गया है शराब और शराब की बोतलें खोजना. आतंकवाद और राज्य की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा करने वाले अधिकारी अब शराबियों का पीछा करेंगे क्योंकि इस से सरकार के नंबर बढ़ेंगे. शराबबंदी वाले बिहार में शराब को ढूँढने के नशे में पुलिस दुल्हन के कमरे में घुस जाती है, होटल के बाथरूम में नहाती हुई औरत को तौलिया लपेट कर बाहर आने को कहा जाता है. नैतिकता को शर्मशार करते हुए और लोगों की निजता का हनन करते हुए आखिर सरकार अपने नंबर बढ़ कर क्या साबित करना चाहती है?
ना नशा मुक्ति केंद्र, ना काउंसलिंग की व्यवस्था
नीतीश कुमार द्वारा बिहार में लागू किए गए शराबबंदी कानून के वैज्ञानिक पक्षों को सरकार ने पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है. आमतौर पर नशे की हालत में गिरफ्तार लोगों की काउंसलिंग कराई जाती है और उन्हें नशा मुक्ति केंद्र ले जाया जाता है. जबकि बिहार सरकार द्वारा इन सब बातों को दरकिनार कर दिया गया है. इसके विपरीत सरकार द्वारा पूरी व्यवस्था शराब ढूँढने और उससे उगाही करने में लगा दी गई है. ऐसे हालत में सवाल उठना तो लाज़मी है कि आखिर बिहार में शराबबंदी कानून कितनी जायज है? और सरकार कितनी सफल?