बांग्लादेश में हुए हमलों के बाद अब भारत के त्रिपुरा में भी दंगे, हिंसा, आगजनी और घर, दुकानों को नुकसान पहुँचाने कि स्थिति बनी हुई है. इस बीच त्रिपूरा में कुछ समुदायों की शांति और मदद की भावना भी सामने आई है. बांग्लादेश/पूर्वी पाकिस्तान के निर्माण ने त्रिपुरा को हमेशा के लिए बदल दिया, जिसका नतीजा हमें त्रिपुरा में बढ़ते हिंसा के रूप में देखने मिल रहा है.
शुक्रवार को दक्षिण रामनगर में जामा मस्जिद त्रिपुरा भर की मस्जिदों में ‘मुनाजत (क्षमा और शांति के लिए प्रार्थना)’ में शामिल हुई, क्योंकि समुदाय ने सिपाहीजला में होने वाले हिंसा को आगे और भड़कने से बचने के लिए एक विरोध रैली को स्थगित कर दिया था. दक्षिण रामनगर बांग्लादेश और भारत की सीमा से सिर्फ 500 मीटर कि दूरी पर स्थित है. यह अगरतला में मिश्रित समुदायों का एक उपनगरीय इलाका है.
यह उपनगर सिर्फ शांति में विश्वास रखता है क्योंकि बाबरी मस्जिद विधवंस के बाद अल्पसंख्यकों पर हो रहे हिंसा का चलन और भी बढ़ गया है. वहीं बांग्लादेश में हुए हिंसा का असर अभी भी त्रिपुरा में सक्रिय है. एक ओर रामनगर में स्थित समुदाय शांति सुनिश्चित करने के लिए आज भी अपने पुराने संबंधो पर भरोसा करती है.
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बांग्लादेशी हिंदुओं के लगातार प्रवास के दौरान, त्रिपुरा राज्य की अधिकांश जनजातीय आबादी अल्पमत में आ गई है. 2011 में हुई जनगणना के अनुसार त्रिपुरा की 36 लाख आबादी में से लगभग 9 प्रतिशत आबादी मुसलमान हैं.
जामा मस्जिद के इमाम अब्दुल रहीम चौधरी ने आरोप लगाया है कि कुछ बदमाश एवं शरारती तत्वों द्वारा मस्जिदों पर हमले किए जा रहे है. उन्होंने कहा कि “हमने बांग्लादेश में (दुर्गा पूजा पंडालों में) ईशनिंदा की घटनाओं का भी विरोध किया, हमें लगता है कि वहां कोई बड़ी साजिश काम कर रही थी लेकिन विदेश में जो हुआ उसका त्रिपुरा से कोई संबंध नहीं है. हम सब यहां भारतीय हैं. भारत में 90 प्रतिशत से अधिक हिंदू और मुसलमान धर्मनिरपेक्ष हैं.”
उन्होंने आगे कहा “एक सूक्ष्म अल्पसंख्यक ने अशांति पैदा करने की कोशिश की, लेकिन हम बच गए”.
42 वर्षीय बाबुल मियां का कहना है कि ये घटनाएं पथभ्रष्टता थीं, “मैं यहां लगभग 30 वर्षों से रह रहा हूं. मैंने कभी कोई सांप्रदायिक उत्तेजना नहीं देखी. हम हिंदुओं के त्योहारों में शामिल होते हैं , वे हमारे त्योहारों में शामिल होते हैं.”
बाबुल ने दोनों पक्षों को शांति बनाए रखने के लिए एक हिंदू परिवार में हुई मौत का उदाहरण देते हुए बताया कि “उसे श्मशान ले जाने वाला कोई नहीं था. हमने पैसे इकट्ठा किए, उसे श्मशान ले गए, अनुष्ठानों में शामिल हुए और परिवार को हर संभव मदद प्रदान की. इसमें हम सब साथ हैं. मैं चाहता हूं कि हर कोई इस सरल सत्य को समझे.”
त्रिपुरा में अधिकांश विरोध प्रदर्शन और हिंसा ‘VHP व हिंदू जागरण मंच’ जैसे दक्षिणपंथी के विरोध के कारण हुई है. भाजपा सरकार ने इन संगठनों को अल्पसंख्यक इलाकों के पास मार्च निकालने से रोकने के लिए तेजी से कार्रवाई की है. बीजेपी ने त्रिपुरा में हो रहे हिंसा को देखते हुए धारा 144 प्रतिबंध लगा दिया है. वहीं बाहरी मस्जिदों सहित संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा तैनात की गई है, शांति बैठकों का आयोजन किया गया हैं. अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं और तोड़फोड़ के मामलों में भी गिरफ्तारी की गई है, पुलिस का कहना है कि पूरे राज्य में कानून व्यवस्था बहाल कर दी गई है.
इस उदाहरण से यह साबित होता है कि आज भी कुछ लोग हिंसा और विरोध को छोड़ शांति व सद्भावना के मूल में विश्वास रखते हैं.