देश की संसद में चल रहे शीतकालीन सत्र, 2021 का समापन हो चुका है. 29 नवंबर को शुरू हुआ यह सत्र 23 दिसंबर तक शेड्यूल्ड था लेकिन एक दिन पहले ही दोनों सदनों की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई. इस शीतकालीन सत्र में सरकार और विपक्ष के तकरार के बीच कई अहम विधेयक पास हुए. कृषि कानून वापसी विधेयक से लेकर लड़कियों की विवाह की आयु 18 से बढ़ाकर 21 करने संबंधित विधेयक के पास होने तक सत्र काफी हंगामेदार रहा. इसी बीच एक राज्यसभा सांसद का भाषण इंटरनेट पर वायरल हो रहा है. भाषण है केरल से पहली बार राज्यसभा सांसद बने जॉन ब्रिटास का. राज्यसभा में अपनी बात रखते हुए, अपने पहले ही भाषण में, जॉन ब्रिटास ने भारतीय न्यायिक प्रणाली में नियुक्ति की तरीकों, ब्राह्मणवादी प्रतिनिधित्व के अधिकता और वंशवाद पर सवाल उठाया.
केरल से सीपीआई (एम) के सांसद जॉन ब्रिटास ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और सेवा की शर्तें के संशोधन पर लाए गए विधेयक, 2021 के बारे में बात करते हुए न्यायाधीशों की नियुक्ति की तरीकों और भारत की उच्च न्यायपालिका में सामाजिक विविधता की कमी की आलोचना की.
क्या कहा ब्रिटास ने अपने भाषण में?
हाल के दिनों में संसद के सम्पन्न हुए शीतकालीन सत्र में ब्रिटास ने अपने भाषण में कहा था, “भारत के अब तक के 47 मुख्य न्यायाधीशों में से, कम से कम 14 ब्राह्मण रहे हैं. 1950 से 1970 के बीच सर्वोच्च न्यायालय की अधिकतम शक्ति 14 न्यायाधीशों की थी और उनमें से 11 ब्राह्मण थे. हमारे देश में न्यायिक नियुक्तियां कैसे होती है यह देख कर पहले कानून मंत्री डॉ. बीआर अम्बेडकर भी अपने कब्र में लेटे सदमे में आ गए होंगे.”
“न्यायाधीश ही न्यायाधीश की नियुक्ति कर रहे हैं. यह न्यायिक नियुक्तियां कैसे की जा रही हैं और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ कैसे छेड़छाड़ की जा रही है. न्यायपालिका में कोई विविधता ही नहीं है. मैं ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं हूँ. मैं किसी भी वर्ग के खिलाफ नहीं हूं. महोदय, सदन यह जानकर चौंक जाएगा कि 1980 तक देश के सर्वोच्च न्यायालय में ओबीसी या एससी-एसटी से कोई न्यायाधीश नहीं था.”
“मुझे विश्वास है कि सविधान के प्रमुख निर्माता और पहले कानून मंत्री डॉ. बीआर अम्बेडकर भी न्यायिक नियुक्तियां कैसे की जाती हैं, न्यायपालिका के स्वतंत्रता के साथ छेड़छाड़ कैसे की जाती है, ये देखकर अपनी कब्र में लेटे सदमे में आ गए होंगे.”
न्यायपालिका में वंशवाद!
एक रिपोर्ट के अनुसार, देश की न्यायपालिका में एक तिहाई से अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय उनके पिता, चाचा या अन्य कोई रिश्तेदार न्यायापालिका के उच्च पदों पर रह रहे होते हैं या राजनीति में. ऐसा कहने का मतलब यह है कि न्यायपालिका में भी अधिकांश उन्हीं लोगों को प्रवेश मिलता है जिनके परिवार का कोई न कोई व्यक्ति न्यायपलिका या राजनीति में रहा हो.
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए देशभर के विभिन्न उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों या सर्वोच्च न्यायालय के उच्च श्रेणी के अधिवक्ताओं के समूह से सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम चयन करती है. ठीक ऐसी ही प्रक्रिया उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए भी है. जॉन ब्रिटास ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की इसी कॉलेजियम प्रणाली पर प्रहार किया और पूछा कि “क्या दुनिया में न्यायाधीशों की नियुक्ति की ऐसी कोई प्रणाली है? ऐसा केवल भारत में होता है.” इस तरह सर्वोच्च न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालयों तक रिश्तेदारों के नामों को न्यायाधीश पद पर नियुक्त करने के लिए चयन तो किया जाता ही है बल्कि न्यायाधीश अपने रिश्तेदार वकीलों को अपनी ही कोर्ट में मुकद्दमा करने का मौका देते हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों और उनके रिश्तेदारों की लिस्ट :
न्यायाधीश | रिश्तेदार |
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई | असम के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता केशब चंद्र गोगोई के पुत्र |
न्यायमूर्ति मदन लोकुर | इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बीएन लोकुर के पुत्र |
न्यायमूर्ति अर्जन कुमार सीकरी | भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सर्व मित्र सीकरी के पुत्र |
न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे | महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल अरविंद बोबडे के पुत्र |
न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा | मध्यप्रदेश के पूर्व न्यायाधीश हरगोविंद मिश्रा के पुत्र |
न्यायमूर्ति रोहिंटन फाली नरीमन | सर्वोच्च न्यायालय के वकील फाली नरीमन के पुत्र |
न्यायमूर्ति उदय ललित | दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश यू ललित के पुत्र |
न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़ | भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड़ के पुत्र |
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल | जम्मू कश्मीर के पूर्व मंत्री राजा सूरज किशन कौल के पोते |
न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा | सर्वोच्च न्यायालय के वकील ओ पी मल्होत्रा के पुत्री |
न्यायमूर्ति के एम जोसेफ | सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के के मैथ्यू के पुत्र |
अक्टूबर 2018 में हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर भी इस बात को उजागर को करती है कि कैसे भारतीय शासन व्यवस्था के सबसे महत्वपूर्ण अंग न्यायपालिका को वंशवाद ने प्रदूषित कर दिया है.


इसी विषय पर जस्टिस रंगनाथ पाण्डेय ने भी बीते समय में प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था. उन्होंने पत्र में इस बात का जिक्र किया था कि न्यायपालिका दुर्भाग्यवश वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त है. यहां न्यायधीशों के परिवार का सदस्य होना ही अगला न्यायधीश होना सुनिश्चित करता है. जस्टिस ने बीते साल में हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विवाद तथा अन्य मामलों का हवाला देते हुए लिखा था कि न्यायपालिका की गुणवत्ता और अक्षुण्णता लगातार संकट की स्थिति में है.
ब्रिटास ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मुद्दे पर जोर देते हुए कहा कि यह एक गंभीर कमी है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में हमारी कोई भूमिका नहीं है. पिछले मंत्रिमंडल के विस्तार के दौरान, ओबीसी, एससी और एसटी की एक बड़ी संख्या को शामिल करने की बात कही गई थी. पर जब न्यायपालिका की बात आती है, तो हम इस तरह के विविध प्रतिनिधित्व क्यों नहीं चाहते हैं? देश को योग्य न्यायाधीशों की पहचान और नियुक्ति के लिए न्यायपालिका में बदलाव की जरूरत है.
कौन हैं ब्रिटास?
जॉन ब्रिटास केरेला से सीपीआई (एम) के सांसद है. इन्होंने अपने करियर की शुरुआत पत्रकार के तौर पर सीपीआईएम के मलयालम मुखपत्र देसाभिमानी से की थी, बाद में कैराली टीवी के मुख्य संपादक बने. एक पत्रकार के रूप में, ब्रिटास ने बाबरी विध्वंस और इराक पर अमेरिकी आक्रमण सहित भारत और दुनिया भर की प्रमुख समाचार घटनाओं को कवर किया है. साथ ही ब्रिटास, संसद में सेंट्रल हॉल पास पाने वाले सबसे कम उम्र के पत्रकार थे. ब्रिटास ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया है.

ब्रिटास के भाषण के बाद उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी उनके भाषण की सराहना की. वेंकैया नायडू ने कहा, “मैंने केरल के एक सांसद जॉन ब्रिटास का भाषण सुना. अद्भुत! मुझे बहुत अच्छा लगा. लेकिन अगले दिन मुझे निराशा हुई कि उन्होंने जो कुछ सदन में कहा उसकी एक भी पंक्ति राष्ट्रीय मीडिया में नहीं आई.”