असमानता के दौर में ‘स्टैच्यू आफ इक्वलिटी’ के बहाने

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज हैदराबाद में संत श्री रामानुजाचार्य की 216 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण करेंगे. प्रतिमा को ‘स्टैच्यू आफ इक्वलिटी’ नाम दिया गया है. यह बैठी हुई मुद्रा में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है. इससे पहले भी देश में सरदार पटेल की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा प्रधानमंत्री देश को दे चुके हैं. अब सवाल यह है कि क्या सिर्फ प्रतिमा बना देने से देश में इक्वलिटी आ जाएगी? इस प्रतिमा को बनाने का खर्चा 1000 करोड़ आया है. इस प्रतिमा का अनावरण ऐसे समय में हो रहा है जब देश में असमानता सबसे ज्यादा है. साथ ही बेरोजगारी दर भी पिछले 50 सालों में सबसे ज्यादा है.

प्रतिमा के आंतरिक कक्षा का अनावरण 13 फरवरी को राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द करेंगे. इस पूरी परियोजना में 1,000 करोड़ रुपये की लागत आई है, जिसे भक्तों से मिले दान से ही पूरा किया गया. संत श्री रामानुजाचार्य ने उठाई थी समानता के लिए आवाजवैष्णव संत श्री रामानुजाचार्य का जन्म तमिलनाडु के पेरंबदूर में वर्ष 1017 में हुआ था. उन्होंने समाज के हर वर्ग को समान मानने का दर्शन दिया था. वह राष्ट्रीयता, लिंग, नस्ल, जाति या पंथ के आधार पर भेद के विरोधी थे. उन्होंने सभी प्रकार के भेदभाव को अस्वीकार करते हुए मंदिरों के द्वार सभी के लिए खोलने की पहल की थी. वह दुनियाभर के समाज सुधारकों के लिए समानता के प्रतीक माने जाते हैं.

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, मोदी 216 फुट ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ प्रतिमा का अनावरण करेंगे. यह प्रतिमा 11वीं सदी के भक्ति शाखा के संत श्री रामानुजाचार्य की याद में बनाई गई है. यह प्रतिमा ‘पंचधातु’ से बनी है, जिसमें सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता का एक संयोजन है और यह दुनिया में बैठी अवस्था में सबसे ऊंची धातु की प्रतिमाओं में से एक है.

पीएमओ के मुताबिक यह 54-फीट ऊंचे आधार भवन पर स्थापित है, जिसका नाम ‘भद्र वेदी’ है. इसमें वैदिक डिजिटल पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र, प्राचीन भारतीय ग्रंथ, एक थिएटर, एक शैक्षिक दीर्घा हैं, जो संत रामानुजाचार्य के कई कार्यों का विवरण प्रस्तुत करते हैं. इस प्रतिमा की परिकल्पना श्री रामानुजाचार्य आश्रम के श्री चिन्ना जीयार स्वामी ने की है.

ऐसे दौर में जब फेक न्यूज चारों ओर पसरी पड़ी है, रामानुजाचार्य की शिक्षा और कार्यों को सरकार किस हद तक भारत के आमजन तक पहुंचा पाएगी. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार रामानुजाचार्य के समानता के संदेश को देश में लागू करेगी?

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