बनारस स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर इन दिओं चर्चाओं में हैं. उत्तर प्रदेश में चुनाव है तो जाहिर है मंदिरों के शहर बनारस में मंदिर ही चर्चाओं में होगा. मंदिर के आसपास मौजूद पुलिस आम जनता पर क्या प्रभाव डाल रही है? मंदिर घूमने गए युवाओं की नजर पर पुलिस की मौजूदगी और मंदिर दोनों कितना असर डाल रहे हैं? क्या मंदिर के आसपास पुलिस की मौजूदगी कोई डर पैदा कर रहा है? या क्या वहाँ पुलिस की तैनाती ही डर पैदा करने के लिए की गई है?

आयुष बताते हैं कि, ‘ पहली दफा बनारस में काशी कॉरिडर के इलाके में जाने पर मुझे यह जगह कश्मीर सा लगा. कश्मीर की बजाय इसे हिन्दू कश्मीर का नाम देना उचित रहेगा. कश्मीर की ही गलियों की तरह यहाँ जगह-जगह भाड़ी संख्या में पुलिस बल को देख कर मुझे डर का अनुभव हुआ.

कॉरिडर के आसपास की गलियों में रहने वाले लोगों की आँखों में डर दिखा. हर तीसरा व्यक्ति एक पुलिस वाला था. लोकल लोग अगर किसी पत्रकार या फोटोग्राफर से बातचीत कर रहे होते थे पुलिस वालों की नजर उनपर जमी रहती थी. मानो, एक शब्द ऐसा निकलने वाला है कि उनकी गिरफ़्तारी हो सकती है. ज़्यादातार लोग बातचीत करते-करते कह बैठते थे कि मुझे अपने जान की फिकर है.’

क्या ऐसे युवाओं को दिखने वाला डर कृत्रिम है या इनके पीछे कोई वजह छुपी हुई है. क्या मंदिर के आसपास पुलिस की डर पैदा करनेवाली तैनाती क्या उत्तर प्रदेश चुनाव को ध्यान में रखकर की गई है.? बनारस के घाटों पर भी दूर पर पसरी उदासी के साथ डर की आहट दिखती है.
लोगों का बात नहीं करना बनारस में अखड़ता है. जब बनारस प्रेम का शहर है तब युवाओं को पुलिस की मौजूदगी और डर आखिर दिखता क्यों है. वैसे चुनाव का होना और उत्तर प्रदेश में मंदिर और पुलिस का कॉकटेल रोचक है. अंतर इतना ही है कि राम की जगह महादेव हैं। छोटे मंदिरों की जगह बड़ा मंदिर.

मगर बनारस घूमने गए युवाओं को ऐसा डर क्यों दिखता है, क्या यह सवाल संसद में उठाने लायक नहीं है. इधर चुनाव भी है. और ऐसे में सवाल यह है कि क्या महादेव आने वाले समय में राम को रिपलेस करने के दावेदार बन सकते हैं.?