भारत की बढ़ती जनसंख्या में हर राज्य का योगदान दिखता है. वह दिन दूर नहीं है जब भारत जनसंख्या के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ देगा. भारत में अब तक सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश हैं जिसकी जनसंख्या 23 करोड़ जितनी हैं. भारत में जनसंख्या तो बढ़ते जा रही है मगर उस जनसंख्या का उपयोग नहीं हो पा रहा है. जनसंख्या में बढ़ोतरी होने से उस राज्य और उसके आसपास वाले राज्यों में जनसंख्या अधिक है, वहाँ क्षेत्रीय असंतुलन की स्थिति पैदा हो सकती है.
आसान शब्दों में अगर किसी देश के क्षेत्र के विकास में कमी हो और आबादी बढ़ते जा रही हो, तो ऐसे भाग से लोग निकल कर अधिक रोज़गार व आजीविका की खोज में दूसरे क्षेत्रों की ओर प्रस्थान करने लगते हैं, जिससे जनसंख्या असंतुलन की समस्या आ जाती है. हर क्षेत्र को संसाधन की मात्रा समानांतर नहीं होती जिसके कारण जनसंख्या की अधिकता तनाव उत्पन्न करती है.
यूपी सरकार ने इसको मद्देनज़र रखते हुए 11 जुलाई 2021 को विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर नए जनसंख्या नीति की घोषणा की थी. इस नीति के अंतर्गत 1 या 2 बच्चे वालों को अधिक लाभ और 2 से ज्यादा बच्चे वालों को न के बराबर लाभ मिलेंगे. सरकारी, रोजगार, शिक्षा तथा स्थानीय तौर पर उन्हें किसी भी सुविधा से वंचित रखा जाएगा.
यूपी सरकार का लक्ष्य जन्म दर को वर्तमान की 2.7% से 2026 तक 2.1% में बदलने का है मगर सवाल यह है कि यूपी सरकार की यह योजना किस हद तक लाभकारी है. भारत में पहले भी कई बार जनसंख्या को नियंत्रित या उसका सही प्रयोग करने का प्रयास बखूबी किया गया है. फिर भी जनसंख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, तो क्या भरोसा है कि यह योजना काम कर जाएगी.
अब सवाल है कि इस नीति से लोगों का फायदा कैसे होगा? मान के चलें की जनसंख्या नियंत्रित होना शुरू हो जाए और मिसाल के तौर पर इस नीति के दौरान अगर किसी नेता के दो से ज्यादा बच्चे हो जाएँ और उसे चुनाव में हिस्सा लेने का मन हो या किसी सरकारी नीति का हिस्सा बनने का मन हो और इस नीति के कारण उसे ऐसा न करने दिया जाए तो वह अपनी पत्नी के खिलाफ बिना सोचे समझे कोई भी कदम उठा सकता है.
यह नीति या भारत में बनी कोई भी नीति जो बच्चों से जुड़ी है उसका सीधा असर महिलाओं पर होता है क्योंकि हमारी पितृसत्तात्मक समाज के अनुसार बच्चों से संबंधित अधिकांश बातों की जिम्मेदारी महिलाओं पर थोपी जाती हैं.
चीन में वन चाइल्ड पॉलिसी
अगर कम बच्चे पैदा करने के कानून को भारत के अलावा दूसरे देशों में देखा जाए जैसे की चीन को तो यहां 1979 में लागू हुई ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ भी एक बहुत नाकाम कोशिश रही. ऐसा इसीलिए क्योंकि कम उम्र के लोगों की कमी करने से बड़ी उम्र के लोगों की संख्या बढ़ गई और पेंशन की मांग भी बढ़ गई.
चीनी सरकार को आर्थिक व्यवस्था करने में मुश्किल हो रही थी. यही नहीं परिवारों में एक ही इंसान पर कई लोगों की देखभाल व पालन पोशन करने का दबाव आ जा रहा था.
सबसे बड़ा अन्याय स्त्रियों के साथ हो रहा था. क्योंकि पुराने समय का चीन भी पुरुष-प्रधान समाज था और पहला बच्चा अगर कन्या होती थी तो उसे मारने के मामले भी सामने आए थे. इन कारणो से चीन ने 2015 में ‘वन चाइलड पॉलिसी’ को हटा कर ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ को लागू कर दिया.
चीन के अलावा और बहुत से देश हैं जैसे कि जापान, इंग्लैंड, जर्मनी इत्यादि को ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. बहुत सारे देशों ने कानूनों को संशोधन कर के लागू किया.
भारत जैसे लिंग पक्षपाती देश में ऐसे कानून या नीति के उपरांत क्या होगा इसकी हम कल्पना करें तो हमें सिर्फ तबाही नजर आएगी. अगर देखा जाए तो भारत की परिसंपत्ति उसकी युवा जनसंख्या है.
समाधान
भारत में ज्यादातर आबादी में युवा पीढ़ी शामिल हैं. युवा पीढ़ी से हम कुशलता की उम्मीद कर सकते हैं और अगर भारत अपनी युवा जनसंख्या का प्रयोग सही तरीके से करे तो जनसंख्या महज एक बोझ बन के नहीं रह जाएगी. भारत के लोगों को यदि बढ़ती हुई जनसंख्या से भविष्य में होने वाली हानि की मार नहीं खानी है तो ज़ाहिर सी बात है कि उन्हें शिक्षा में कमी, बेरोजगारी तथा संसाधनों की बर्बादी जैसी चीजों को चेतावनी के तौर पर लेने की जरूरत है. जनसंख्या की कार्यशीलता को दिमाग में रखते हुए अगर कोई देश काम करे तो उस देश की दशा पलट सकती है.
भारत में इस काल में युवा एवं कार्यशील जनसंख्या अत्यधिक है किंतु उसके लिये रोज़गार के सीमित अवसर ही उपलब्ध हैं. ऐसे में यदि जनसंख्या की बढ़ोतरी को नियंत्रित न किया गया तो स्थिति दयनीय हो सकती है. महिलाओं को अगर मौका दिया जाये तो वे देश की आर्थिक व्यवस्था को परिपूर्ण बनाने में मदद कर सकती हैं. स्त्री जनसंख्या का भी सही प्रयोग करने से देश की हालत सुधर सकती है. उन्हें भी निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए. अगर सरकार अपने बनाए गए नियमों व नीतियों की ओर ध्यान दें कि वे ठीक से लागू और पालित किए जा रहे हैं तो लोग सरकार के सहायक बन सकते हैं.
ये लेखिका के निजी विचार हैं