पिछले कुछ दिनों से बिहार बिजली खरीदने के लिए प्रतिदिन 20 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च कर रहा है. उसके बावजूद भी ये बिहार के 5,500 मेगावाट की मांग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त पड़ रहा है.
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार राज्य के बिजली अधिकारियों ने कहा कि राज्य कोयले की कमी का सामना कर रहा है.
इस रिपोर्ट में बिहार के बिजली संकट के कई कारण बताए गए है. जिसमें से प्रमुख है – केन्द्रीय क्षेत्र जो एनटीपीसी के माध्यम से राज्य को बिजली की आपूर्ति करता है. वो बिहार के 4500 मेगावाट के निर्धारित आवंटन में से 3,000 से 3,300 मेगावाट बिजली की ही आपूर्ति करने में सक्षम है.
फरक्का और कहलगाँव सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट में कोयले की कमी के कारण बाढ़ सुपर थर्मल पावर की 660 मेगावाट यूनिट 5 के बंद होने से भी बिजली संकट गहरा गया है. यहाँ कोयले का स्टॉक कम हो गया है.
बिहार में कोयले की कमी
सरकारी सूत्रों की माने तो बिहार को बिजली आपूर्ति करने वाली संस्था एनटीपीसी के बिजली संयत्रों में रोजाना 1.2 लाख मीट्रिक टन कोयले की मांग है. जबकि इसकी दैनिक उपलब्धता 0.7 से 0.8 लाख मीट्रिक टन थी.
बिजली संकट का एक कारण कोयले की बढ़ी कीमत को भी बताया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की बढ़ी कीमत के कारण निजी कंपनियां देश भर की थर्मल पावर की बढ़ी मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हो पा रही है.
हालांकि केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने पिछले दिनों किसी भी राज्य में कोयले और बिजली की कमी से इनकार किया था.
राज्य में बिजली संकट को देखते हुए केन्द्रीय मंत्री का ये बयान राजनीतिक लीपापोती से बढ़कर कुछ भी प्रतीत नहीं होता है.

कांटी और बरौनी के बिजलीघरों के बंद होने की खबर आ चुकी है
पिछले दिनों एनटीपीसी 330 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करने वाले बिहार के बरौनी और कांटी स्थित बिजलीघरों के बंद करने की सूचना दे चुका है. इन्हें बंद करने के कारणों में कोयले की अधिक खपत और उसकी बढ़ी हुई कीमत भी शामिल है.

सरकार अपने बचाव में चाहे जो कुछ भी कहे लेकिन राज्य की स्थिति आने वाली बिजली संकट की ओर इशारा कर रही है.
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