सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि राजनीतिक विचारों या पत्रकारों को दबाने के लिए राज्य बल का इस्तेमाल कभी भी नहीं किया जाना चाहिए. हालांकि शीर्ष अदालत ने इसके साथ यह भी कहा कि राजनीतिक वर्ग को भी अपने उन विचारों का आत्मनिरीक्षण करना चाहिए जिन्हें वे देश के सामने व्यक्त कर रहे हैं और ट्विटर के इस युग में पत्रकारों की जिम्मेदारी बढ़ी है. उन्हें इसे ध्यान में रखते हुए काम करना चाहिए.
न्यायाधीश एसके कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने यह टिप्पणियां पश्चिम बंगाल में कुछ लेखों के प्रकाशन को लेकर एक समाचार वेब पोर्टल के संपादकों और अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए की. पीठ ने कहा कि अपनी विविधता पर गर्व करने वाले हमारे देश में विभिन्न विचारों और अलग-अलग राय का होना लाजिमी है. इनमें राजनीतिक विचार भी शामिल होते हैं. यह लोकतंत्र का मूल तत्व है.
सोशल मीडिया के युग में पत्रकारों की जिम्मेदारी बढ़ी है
पीठ ने कहा कि राज्य बल का इस्तेमाल किसी राजनीतिक विचार का दमन करने या किसी पत्रकार को उस वस्तु के लिए दबाने में बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए जो पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में मौजूद है. उसने कहा कि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि इससे पत्रकारों की जिम्मेदारी कम हो जाती है कि वह किसी घटना को कैसे रिपोर्ट करते हैं. ट्विटर के इस युग में पत्रकारों की जिम्मेदारी में और इजाफा हुआ है.
पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने पीठ को बताया कि सरकार ने ऑप इंडिया डॉट कॉम नामक समाचार पोर्टल के संपादकों व अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस लेने का फैसला किया है. यह एफआईआर नूपुर शर्मा, अजीत भारती और अन्य के खिलाफ दर्ज की गई थी. इससे पहले अदालत ने बंगाल में दर्ज एक नई एफआईआर पर आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी.
टेलीनीपारा दंगे से जुड़ी हुई है एफआईआर
यह एफआईआर मई 2020 में बंगाल के टेलीनीपारा में हुए सांप्रदायिक दंगों के बारे में इस वेब पोर्टल में प्रकाशित रिपोर्टों से जुड़ी हुई है. नूपुर शर्मा, अजीत भारती और अन्य की ओर से इस एफआईआर को चुनौती देने वाली मुख्य याचिका में दावा किया गया था कि पश्चिम बंगाल सरकार और उसकी ‘सत्तावादी कोलकाता पुलिस’ पत्रकारों को डराने के लिए एफआईआर व पुलिस शक्तियों का गलत इस्तेमाल कर रही है.