देशवासियों से माफी के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लिए

राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने गुरु पर्व और कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया. प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानून को वापस लेते हुए कहा, कि सरकार तीनों कानून को रद्द करने का फैसला करती है. इस महीने के अंत में संसद के दोनों सत्रों में संवैधानिक प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “मैं देशवासियों से माफी माँगता हूँ. हम अपनी बात कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए.आज गुरु नानक जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर मैं पूरे देश को यह बताने आया हूँ कि हमने 3 कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला लिया है. हम इन कानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया जल्द शुरू करेंगे. पीएम ने किसानों से अनुरोध किया कि आप अपने घर लौटें, अपने खेत लौटें, आइए नई शुरुआत करते हैं.”

आपको बात दें, पिछले लगभग एक साल से किसान कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 नामक तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे थे.

तत्काल वापस नहीं लेंगे आंदोलन: राकेश टिकैत

प्रधानमंत्री के तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले पर राकेश टिकैत ने ट्विटर के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया दी. टिकैत ने कहा कि वे आंदोलन को फिलहाल वापस नहीं लेंगे जबतक सरकार संसद में इन कानूनों को संवैधानिक रूप से रद्द नहीं कर देती.

पंजाब की राजनीति पर क्या होगा असर?

आपको बात दें पंजाब विधानसभा चुनावों में अब बहुत कम समय बचा है. फरवरी-मार्च में होने वाले पंजाब चुनाव में इस फैसले का व्यापक असर पड़ सकता है. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने अपनी नई पार्टी के ऐलान में कहा था कि अगर बीजेपी किसानों के हित में काम करती है तो हम बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा था, भाजपा को भागीदार के रूप में स्वीकार करने का निर्णय कृषि कानूनों के मुद्दे पर संतोषजनक समाधान पर निर्भर करता है. प्रधानमंत्री मोदी के कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले के बाद अब यह रास्ता भी साफ नजर या रहा है.

क्यों हुआ विरोध

1. आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 के अंतर्गत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक सामग्री की सूची से बाहर निकाल कर युद्ध जैसी असाधारण स्थिति को छोड़कर इनके असीमित भंडारण की अनुमति दी गई थी.

विरोध –

किसानों के पास भंडारण की कोई सुविधा नहीं होती और वो पिछले फसल को जल्द-से-जल्द बेच कर अगली फसल के लिए पूँजी जुटाना चाहते हैं. ऐसे में इस कानून से किसानों के हित की बात बेमानी मालूम पड़ती थी.

2. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, 2020 के अंतर्गत किसानों और व्यापारियों को एपीएमसी (ऐग्रिकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) की पंजीकृत मंडियों से बाहर फसल बेचने की आजादी दी गई थी. एक राज्य से दूसरे राज्य में बिना रोक-टोक के फसल बेचने को बढ़ावा देने की बात थी.

विरोध –

इस कानून से किसान में सबसे अधिक संशय एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को लेकर था. किसान और विपक्ष का दावा था कि मंडियों के बाहर फसल खरीद-बेच से धीरे-धीरे एमएसपी पर फसल की खरीद बंद हो जाएगी.

3. कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020 के अंतर्गत कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग में किसान बड़ी कंपनीयों के साथ पहले से तय मूल्य पर अपनी फसल बेच सकते थे.

विरोध

किसानों का दावा था कि बड़ी कंपनी से कान्ट्रैक्ट में खरीद-फरोख्त के मामले में किसान हमेशा कमजोर पड़ेंगे. छोटे किसानों से बड़ी कंपनी कान्ट्रैक्ट नहीं करना चाहेगी. इस कानून से धीरे-धीरे कृषि जगत पर पूँजीपतियों और कोरपोरेट घरानों के आधिपत्य के संशय को अस्वीकार नहीं किया जा सकता था.

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