बैंको का निजीकरण: सरकार की सोची समझी रणनीति

मोदी सरकार बैंको का निजीकरण करके देश को तबाह बर्बाद करने का काम कर रही है। निजी क्षेत्र में जाते ही बैंक अपने ग्राहक से अलग अलग तरीकों से टैक्स वसूलना शुरू कर देगी. आपको एक लिमिट दायरे में खाता में पैसा रखना अनिवार्य कर दिया जाएगा. अगर खाता में मिनिमम राशि नहीं रहेगी तो खाता निष्क्रिय हो सकता है.

इसके अलावे यह भी हो सकता है कि बैंक में पैसा रखने के लिए भी आने वाले दिनों में कुछ राशि की कटौती का प्रावधान अनिवार्य कर दिया जाए. बैंक से जुड़े सारे कार्यों को करने के लिए भविष्य में बैंक को उस कार्य के लिए शुल्क देना अनिवार्य हो सकता है. अभी भी बैंक एटीएम कार्ड और एस एम एस तथा खाता के रखरखाव के लिए शुल्क वसूलता है.

निजीकरण के बाद यह हो सकता है कि इस शुल्क में वृद्धि कर दिया जाए. वर्तमान सरकार कॉरपोरेटपरस्त सरकार है. यह कभी भी आम आदमी की बात नही करेगी. इसे केवल छल कपट करना आता है. जनता को बरगलाना, धार्मिक आस्था से खिलवाड़ करना, अपनी छवि को बनाये रखने के लिए जनता के पैसे को पानी की तरह बहाना- ये सारी बातें एक लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देती हैं.

इस सरकार के पास ना कोई विजन है और ना ही देश को आगे बढ़ाने की क्षमता. देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर को पूरी तरह से बर्बाद करने का खेल बदस्तूर जारी है. इस सरकार की कोई भी नीतियाँ आम आदमी के हित में नही है.


कुल मिलाकर देखा जाए तो यह सरकार धीरे धीरे देश के सारे परिसंपत्तियों को बेचने पर आमादा है. इस पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में आम आदमी को शोषण, उत्पीड़न और जलालत की जिंदगी ही जीनी पड़ेगी क्योंकि इस व्यवस्था में पूँजी को मानव श्रम से बड़ा माना जाता है.

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