मैथिली साहित्य के आसमान का एक तारा आज टूटा तो सबकी आंखे नम हो गई. सुप्रसिद्ध साहित्यकार लिली रे का 03 फरवरी को 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. बीते 26 जनवरी को ही उन्होंने अपना 89वां जन्मदिन मनाया था. लिली रे के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है. लिली रे बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न थी. अपने लेखनकाल में लिली रे ने बहुत सारी बेहतरीन कहानियां और उपन्यास मैथिली साहित्य को दिये. लिली रे को श्रेष्ठ लेखिका होने का गौरव हासिल है.
साहित्यकार लिली रे का जन्म जनवरी 26, 1933 को बिहार के पूर्णिया जिले में हुआ था. अपने साहित्यिक जीवन में उन्होंने मैथिली साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. साल 1982 में मैथिली उपन्यास ‘मरीचिका’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. अपनी लेखनी से लिली रे ने मैथिली साहित्य को एक अलग ऊंचाई तक पहुंचाया है.
शोक व्यक्त करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके निधन को दुखद बताया. मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया कि मैथिली की प्रख्यात साहित्यकार लिली रे जी का निधन दुःखद. लिली रे जी का मैथिली साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्हें वर्ष 1982 में मैथिली उपन्यास ‘मरीचिका’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. दिवंगत आत्मा की चिर शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना है.
लिली रे की रचनाओं में रंगीन पर्दा और मरीचिका सबसे ज्यादा प्रसिद्ध रहे हैं. उपन्यास मरीचिका के लिए उन्हें साल 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. मरीचिका के अलावे उन्होंने नक्सल आधारित उपन्यास पटाक्षेप, उपसंहार, जिजीविषा, रंगीन परदा और लाली गुरौंस नामक रचनाएं भी मैथिली साहित्य को दिए. रे ने कई हिंदी और बांग्ला भाषा की रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है. साल 2004 में लिली रे को प्रबोध साहित्य सम्मान भी दिया गया था.
लिली रे का निधन दिल्ली में कल रात हुआ. निश्चित ही लिली रे के निधन से मैथिली साहित्य में बड़ा शून्य पैदा हुआ है, परंतु देश, बिहार और मैथिली साहित्य के प्रति उनका योगदान सदैव अमर रहेगा.