गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उत्तर प्रदेश पुलिस को सुरक्षा के बंदोबस्त में पूरी तरह से सक्रिय देखा गया. आतंकवादियों की खोज में यूपी की पुलिस प्रयागराज के हॉस्टल और लॉज में पहुंची थी. बहुत सारे आतंकवादियों ने खुद को कमरे में बंद रखा था. बहादुर पुलिस को ऊपर से ऑर्डर रहा होगा तो उसने दरवाजे को बंदूक के बट्ट से तोड़ने का प्रयास किया. एक बहादुर जब इसमें सफल नहीं हुए तो वो दरवाजे पर कूदने लगे, पूरे जोर के साथ. ये जरूरी भी था क्योंकि अंदर जो था उससे उनके आकाओं की सत्ता को खतरा था.
इस वीडियो को देखने के बाद अब तक तो मैं यही समझ रहा था लेकिन अभी-अभी मेरे सहयोगी ने बताया है कि अंदर कमरे में कोई आतंकवादी नहीं है. दरअसल वो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी है. ये उस राज्य का दृश्य है जहां अगले कुछ दिनों में चुनाव है.
ऐसा ही दृश्य पूरे बिहार का है. जो लोग आँख मूँद कर सिर्फ विद्यार्थियों के उग्र होने की बात कर रहे है वो इस वीडियो को देख सकते हैं.
एक युवक गिरगिराकर कह रहा है कि हमको छोड़ दीजिए, हम कुछ नहीं किये है. बदले में आने-जाने वाली पुलिस सालों से निष्क्रिय पड़ी हुई अपनी लाठी का अभ्यास कराते हुए निकल रही है.
फिलहाल इस मामले में अपडेट ये है कि रेलवे ने एक बड़ा दांव खेला है. जिसकी चपेट में विद्यार्थियों से लेकर शिक्षक तक आ गए हैं. जो सोशल मीडिया पर इसे छात्रों की जीत बता कर जश्न मना रहे हैं, उन्हें जरा ठहर कर सोचना चाहिए. रेलवे ने एनटीपीसी परीक्षाओं पर रोक लगा कर रिजल्ट पर पुनर्विचार के लिए एक कमिटी का गठन किया. रेलवे बोर्ड ने बिल्कुल सही समय पर सही दांव खेल कर अगले कुछ सालों के लिए मामले को रफा-दफा कर दिया है.
ज्ञात रहे कि अगले कुछ महीनों में देश के पाँच राज्यों में चुनाव है. ऐसे में सरकार किसी तरह का बवाल नहीं चाह रही है. लेकिन दूसरी तरफ छात्रों की समस्याओं पर अविलंब कोई कार्रवाई करने की बजाय बोर्ड अगले दो-तीन सालों के लिए फिर छात्रों का भविष्य अंधेरे में डालना चाह रही है.
इसकी शुरुआत हुई आरआरबी एनटीपीसी सीबीटी-1 के रिजल्ट की घोषणा के बाद. 18 जनवरी को छात्रों ने वन स्टूडेंट वन रिजल्ट के हैसटैग को ट्विटर पर ट्रेंड कराया. सरकार खामोश रही. कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं. मानो ऐसा हो कि छात्रों की इतनी बड़ी संख्या सरकार के लिए कोई मायने ही नहीं रखती.
छात्रों की कुछ शिकायतें थी. जिसमें मुख्य रूप से नॉर्मलाईजेशन प्रोसेस में गड़बड़ी और एक ही अभ्यर्थी का कई पदों पर चयन था.
35 हजार 208 पदों के लिए हुई इस परीक्षा में 75 लाख परीक्षार्थी शामिल हुए थे. जिसके प्रथम चरण के रिजल्ट में एक ही उम्मीदवार का चयन कई पदों के लिए कर लिया गया. इससे लाखों की संख्या में अभ्यर्थी बाहर हो गए. प्रारंभिक परीक्षा में साढ़े सात लाख विद्यार्थियों का चयन होना चाहिए था. लेकिन एनटीपीसी ने एक ही अभ्यर्थी का कई पदों के लिए चयन कर लिया जिससे ढाई लाख विद्यार्थियों का ही रिजल्ट आया. इसके विरोध में विद्यार्थियों द्वारा वन स्टूडेंट वन रिजल्ट की मांग चली.
ये मामला अभी थमा भी नहीं था कि 24 जनवरी को रेलवे ग्रुप डी की होने वाली परीक्षा के लिए नया नोटिस आ गया. जिसमें कंप्युटर आधारित दो परीक्षाओं की बात कही गई. जबकि 2019 में जब इसका फॉर्म भरवाया गया तो सिर्फ एक ही परीक्षा की बात कही गई थी.
छात्रों को पता था कि इस बार ट्विटर ट्रेंड से सरकार नहीं हिलने वाली. उन्होंने फिज़िकल प्रोटेस्ट का रास्ता अपनाया और शुरुआत में आरा और पटना के रेलवे का चक्का जाम कर दिया गया. फिर बात पूरे बिहार में फैल गई. बक्सर, जहानाबाद, मुजफ्फरपुर, गया के साथ पूरे बिहार और यूपी के कई इलाकों में प्रदर्शन शुरू हो गया.
छात्रों की बहदुरी के आगे सरकार बहादुर कमजोर कैसे पड़ जाते. 24 जनवरी की शाम ढलते-ढलते बिहार पुलिस पर रेलवे ट्रैक खाली कराने का दवाब आया. फिर क्या था पुलिस के लिए सरकार की बातें सर-आँखों पर. पुलिस ने लाठीचार्ज किया, बात नहीं बनी, आँसू गैस के गोले छोड़े, गालियां दी, बेरोजगारों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा.. किसी तरह से भीड़ को तितर-बितर किया लेकिन सुबह होते ही युवाओं की भीड़ पटना के स्टूडेंट जोन कहे जाने वाले भिखना पहाड़ी में जमा हो गई.
युद्ध का क्षेत्र तैयार हो गया. बेरोजगारों को उनकी हैसियत दिखाने के लिए सरकार बहदूर ने पुलिस के सहारे व्रज वाहन तैनात करवाए. फिर वही सब शुरू हुआ. दोनों तरफ से पत्थरबाजी और गालियों का दौर चला. मैं गालियों का दौर कह रहा हूँ ये गनीमत है, हो सकता है किसी दिन आ के बताना पड़े कि गोलियों का दौर चला है.
पुलिस ने आँसू गैस के गोलों और लाठियों से वहाँ से भी छात्रों को भागा तो दिया लेकिन उनकी आवाज को नहीं दबा पाए.
शाम होते रेलवे ने इन छात्रों के लिए एक धमकी भरा खत लिखा जिसमें कहा गया कि आंदोलन में भाग लेने वाले छात्रों पर सख्त कार्रवाई होगी उन्हें जीवन में कभी रेलवे की नौकरी नहीं दी जाएगी.
इस धमकी के बाद छात्र सोशल मीडिया पर और अधिक ऊर्जा से सक्रिय हो गए. कुछ ही घंटों में बोर्ड को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने दूसरा दांव खेल दिया.
समस्याओं का समाधान करने की बजाए एनटीपीसी की परीक्षाओं को स्थगित कर दिया गया और कमिटी बना दी गई. जाहीर है सरकार के दवाब में आकार बोर्ड ने चुनाव को देखते हुए मामले को शांत करने का प्रयास किया.
अब छात्रों के आगे और बड़ी समस्या है. कमिटी का गठन और परीक्षा के स्थगित होने का अर्थ है अब अगला नोटिस दो-चार साल बाद ही आएगा.
गनीमत है छात्रों के बड़े समूह ने इस दांव को समझा और अपने आंदोलन को जारी रखा. गणतंत्र दिवस की सुबह जहानाबाद में छात्रों ने ट्रेन के सामने राष्ट्र-गान के साथ विरोध दर्ज कराया. फिलहाल बिहार और यूपी के कई इलाकों में ये आंदोलन जारी है. छात्र इस मामले को सालों तक लटकाने की बजाए अविलंब समाधान की मांग कर रहे है.