बिहार में पर्यटन का महत्वपूर्ण केन्द्र बन सकता है रुक्मिणी स्थान, यहां धरती के गर्भ में छुपा है गौरवशाली इतिहास

नालन्दा की धरती का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। इसके कण-कण में अध्यात्म, ज्ञान, पौरूष एवं पराक्रम की कहानियां है। महाभारत काल से जुड़े कई धरोहर आज भी मौजूद हैं, जो हमारी गौरवशाली गाथा को बयां करने के लिए काफी है।

इन विरासतों में बड़गांव स्थित सूर्य तालाब, राजगीर स्थित जरासंध अखाड़ा मौजूद हैं। वहीं, नालंदा का जगदीशपुर गांव भी अपने अंदर हमारे कई गौरवशाली अतीत समेटे है।

इस गांव में रुक्मिणी स्थान नामक एक टीला है, जो भगवान श्रीकृष्ण तथा रुक्मिणी के प्रेम का प्रतीक है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का मिलन इसी स्थल पर हुआ था। इसलिए इस स्थल का नाम रुक्मिणी स्थान पड़ा।

गर्भ में छिपी है इतिहास से जुड़ी कई कहानियां

पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने पिछले कुछ वर्ष पहले टीले की खुदाई के दौरान भगवान विष्णु के काले पत्थर की बेशकीमती मूर्ति निकली थी। अनुमान लगाया जाता है कि‍ यह मूर्ति वैदिक काल की है, जिसमें भगवान विष्णु हाथ में कलश लिए और सिर के ऊपर शेष नाग के छत्र से सुशोभित हैं। यह मूर्ति पूरी तरह सुरक्षित निकाली गई है।

ग्रामीणों के विरोध के बाद खुदाई का काम बंद

कुछ समय पहले इसी स्थल पर भगवान बुद्ध की आकर्षक मूर्ति भी मिली थी। मगर वह खंडित थी। इसके अलावा मिट्टी के बर्तन, मिट्टी की मोहरें सहित पाल और शुंग काल के कई अवशेष मिले हैं।

करीब छह माह तक चली खुदाई के बाद ग्रामीणों के विरोध एवं मुआवजे की मांग के बाद से खुदाई कार्य बंद कर दिया गया है। जिससे इस धरती गर्भ में मौजूद कई पौराणिक स्मृतियां हमसे जुदा है।

टीले की दूसरी बार खुदाई में मिली कई बेश्कीमती मूर्तियां

लोगों ने कहा कि इस जगह के विकास को लेकर हमलोगों के साथ बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार ने योगदान दिया। पुरातत्वविदों का मानना है कि इस टीले की खुदाई में मिले ईंट प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की ईंट की बनावट से पूरी तरह मेल खाते हैं।

इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि‍ यह टीला भी प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का अंग रहा होगा। रुक्मिणी स्थान टीले की दूसरी बार कराई गयी खुदाई में भगवान बुद्ध की तीन फीट की दो मूर्तियां और कई चैत, स्तूप और कमरे मिले हैं।

इस टीले का इतिहास 450 ई. पूर्व कुमार गुप्त, हर्षवर्धन और पाल शासक से जुड़ा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। पूरी खुदाई के बाद ही इसकी सही तस्वीर सामने आ सकती है। खुदाई स्थल की सुरक्षा एवं संरक्षण पर जोर देने के लिए पुरातत्व विभाग से मांग की जा रही है।

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