भारत की आजादी में स्वतंत्रता सेनानियों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है. दर्द, कठिनाई, और इसके विपरीत जो उन्होंने सहन किया है उसे शब्दों में नहीं डाला जा सकता है. ये कहना गलत नहीं होगा कि आजादी के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन का त्याग किया. उनके बाद की पीढ़ियां उनके निस्वार्थ बलिदान और कड़ी मेहनत के लिए हमेशा उनकी ऋणी रहेंगी. ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे देश के पहले गृह मंत्री, पूर्व उप प्रधानमंत्री, हिंदुस्तान के बिस्मार्क कहे जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल.
आज सरदार पटेल के 71वीं पुण्यतिथि के अवसर पर इस खास आर्टिकल में हम आपको बताएंगे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से नवाज़े गए ‘लौहपुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल के बारे में, उनके जीवन के रोचक दास्तान और अनछुए पहलुओं के बारे में.
गुजरात के बेहद प्रसिद्द सोमनाथ मंदिर से करीब 400 किलोमीटर दूर, खेद के गावँ नडियाद में झवेरभाई पटेल तथा लाडबा देवी के घर, 31 अक्टूबर 1875 को सरदार पटेल का जन्म हुआ. 18 साल कि उम्र में 1893 में उनका विवाह झावेरबा पटेल से हुआ. पटेल ने नडियाद, बड़ौदा व अहमदाबाद से प्रारंभिक शिक्षा लेने के उपरांत 1910 से 1913 के बीच इंग्लैंड मिडल टैंपल से लॉ की पढ़ाई पूरी की. 1913 मे पटेल भारत वापस लौट आए और जल्द ही वे भारत के नामचीन क्रिमिनल लॉयर बन गए.

“सरदार” की उपाधि
अपने शुरुवआती जीवन से ही नशा, छुआछूत और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के विरुद्ध उन्होंने लड़ाई लड़ी. वल्लभभाई पटेल ने अपना महत्वपूर्ण योगदान 1917 में खेड़ा किसान सत्याग्रह, 1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह, 1924 में बोरसद सत्याग्रह के उपरांत 1928 में बारदोली सत्याग्रह में देकर अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम की. इसी बारदोली सत्याग्रह में उनके सफल नेतृत्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी और वहां के किसानों ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी.
देश की अखंडता के सूत्रधार
अब देश धीरे-धीरे आजादी की ओर बढ़ने लगा था. 1939 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में जब देशी रियासतों को भारत का अभिन्न अंग मानने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया तभी से सरदार पटेल ने भारत के एकीकरण की दिशा में कार्य करना प्रारंभ कर दिया. इसी वजह से आजादी के बाद देश की एकता और अखंडता का उन्हें सूत्रधार भी कहा जाता है. देश 1974 मे आजाद हुआ और आज जो हमारे सामने देश का भौगोलिक स्वरूप है वह उन्हीं की देन है. उन्होंने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में भूमिका निभाई बल्कि 565 देशी रियासतों में 562 को शांतिपूर्ण ढंग से भारत में विलय करवाया.

हैदराबाद से लेकर कश्मीर तक स्पष्ट राय
भारत की आजादी के बाद भी 18 सितंबर 1948 तक हैदराबाद अलग ही था लेकिन लौह पुरुष सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को पाठ पढ़ा दिया और भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारत के साथ रहने का रास्ता खोल दिया. हैदराबाद के बाद कश्मीर को भी भारत में विलय कराने के लिए पटेल ने पुरजोर प्रयास किए थे. कश्मीर को लेकर भी सरदार पटेल की राय स्पष्ट थी कि जिन्ना जब जूनागढ़ ले सकता है तो हम कश्मीर क्यों नहीं. लेकिन उनकी अपनी सीमाएं थीं और यही सीमाएं कश्मीर की समस्या को विकट बना गई.
भारत के 2/5 भाग क्षेत्रफल में बसी देशी रियासतों जहां तत्कालीन भारत के 42 करोड़ भारतीयों में से 10 करोड़ 80 लाख की आबादी निवास करती थी, उसे भारत का अभिन्न अंग बना देना कोई मामूली बात नहीं थी. इतिहासकार सरदार पटेल की तुलना बिस्मार्क से भी कई आगे करते है क्योंकि बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण ,ताकत के बल पर किया और सरदार पटेल ने ये विलक्षण कारनामा दृढ़ इच्छाशक्ति व साहस के बल पर कर दिखाया.
“भारत रत्न सरदार” को नमन
सरदार पटेल सच्चे अर्थों में भारत रत्न थे, उनके के इस अद्वितीय योगदान के कारण 1991 में मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न के सर्वोच्च सम्मान से अलंकृत किया गया. सरदार वल्लभभाई पटेल ने पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया था. उनका देहावसान 15 दिसंबर, 1950 को हुआ था, जब वह 75 वर्ष के थे. आज उनकी 71वीं पुण्यतिथि के अवसर पर इस खास आर्टिकले के माध्यम से हम सरदार पटेल को नमन करते हैं और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
