राजनीतिक दलों द्वारा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की जानकारी सार्वजनिक तौर पर प्रकाशित करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई करने वाला है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों द्वारा अपने उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों के विवरण और उनके चयन के कारण को अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए विचार करेगा.
दागी प्रत्याशियों के बारे में जानकारी छिपाने वाले दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग करते हुए वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुरपीं कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की. भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और हेमा कोहली की पीठ से आग्रह करते हुए वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि “पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन शुरू हो गया है. राजनीतिक दल और उम्मीदवार सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं.” जिसके जवाब में सीजेआई ने कहा, हम इस पर विचार करेंगे. मैं एक तारीख दूंगा.
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में निर्देश दिया था कि राजनीतिक दलों को अपनी आधिकारिक वेबसाइटों के साथ-साथ समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का विवरण अपलोड करना चाहिए. अदालत ने वर्ष 2018 के अपने फैसले को दोहराते हुए कहा था कि पार्टियों को कारण बताना चाहिए कि प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव के लिए क्यों उतारा जा रहा है.
भाजपा नेता तथा वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों में कैराना निर्वाचन क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के नाहिद हसन को चुनावी मैदान में उतारने का उदाहरण दिया. वकील उपाध्याय ने आरोप लगाया कि हसन एक अपराधी है. बावजूद इसके सपा ने न तो उसके आपराधिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक किया और न ही उसके चयन के कारण का खुलासा किया.
फरवरी 2021 में यूपी पुलिस ने नाहिद हसन, उनकी मां तबस्सुम और 38 अन्य लोगों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की थी. हसन पर जमीन खरीदने के मामले में धोखाधड़ी का भी केस दर्ज है. शामली जिले की विशेष अदालत से उन्हें भगोड़ा भी घोषित किया जा चुका है. इसके अलावा भी नाहिद हसन के खिलाफ कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
याचिका में कहा गया कि राजनीतिक दल ने शीर्ष अदालत के 2018 और 2020 के फैसलों का पालन नहीं किया है. इसलिए आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, उन्होंने चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की कि सभी राजनीतिक दल अपनी वेबसाइटों पर उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा करने के अलावा यह भी बताए कि उन्होंने आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवार को क्यों चुना है.
वकील उपाध्याय ने याचिका में यह भी जोड़ा कि जब आपराधिक प्रवृत्ति के लोग विधायक के रूप में शासन में प्रवेश करते हैं, तो वे सरकारी अधिकारियों को भ्रष्ट करके अपने और अपने संगठन के पक्ष में सरकारी तंत्र के कामकाज में हस्तक्षेप करते हैं और प्रभावित करते हैं. बड़े मंत्रियों के साथ अपने संपर्कों का उपयोग करके सरकारी अधिकारियों के तबादला और अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की धमकी भी देते हैं, जिससे स्थिति और भी खराब हो जाती है.
अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है. मंगलवार को मुख्य न्यायधीश एनवी रमना ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करेगा और जल्द ही सुनवाई के लिए मैं एक तारीख दूंगा.