सामंतवाद के कुचक्र में फंसे लोगों की दुखती रग पर एक जोरदार छलांग है स्क्विड गेम

ये थोड़ी पुरानी बात है. गांव के बड़े किसानों के खेत में काम करने रोज ही 20-30 मजदूर आया करते थे. मजदूरों के लिए खाने का प्रबंध भूमि मालिक के यहाँ होता था. इतने ज्यादा मजदूरों का खाना जब घर पर बनता था तो अक्सर ही खाना कम पड़ जाता था.

ऐसे में मेरे गांव के होशियार जमीन मालिकों ने एक तरकीब निकाली थी. जब मजदूर खाना शुरू करते तो घर का एक आदमी उनके सामने बैठ कर खैनी-चूना रगड़ने लगता. मजदूर को खैनी-चूना दिखा कर उसे उत्तेजित करते हुए कहता- “खनवा जल्दी खो न, न त खैनीया दोसर सब खा जतऊ”.

मजदूर खैनी-चूना के लालच में आधा पेट खाकर उठ जाते. लेकिन जब तक वो खाने का पत्तल फेंक कर हाथ-मुंह धोकर वापस आते तब तक खैनी खतम हो चुकी होती थी.

मजदूर धीरे-धीरे इस व्यवस्था को समझ गए थे. लेकिन खैनी, बीड़ी, गुटखा, पान-मशाला और कभी-कभी सिगरेट के लालच में अक्सर ही ये अपने ही लोगो के प्रतिद्वंदी बन जाते थे.

ये सामंती व्यवस्था का एक छोटा प्रारूप है. इसमें छलावा है, समाज के पिछड़े और परेशान लोगों के लिए झूठी उम्मीदें है.

कभी इस समांतवाद का व्यापक रूप हुआ करता था जहां कोई छलावा या झूठ नहीं था. मजदूरों को आधा पेट भोजन देने के लिए झूठ नहीं बोलना पड़ता था. जमींदार इसे अपना हक और मजदूर इसे अपनी किस्मत मानते थे. काम नहीं कर पाने या विद्रोह की स्थिति में मजदूरों के हत्या की बातें भी मामूली ही मानी जाती थी.

मैं नहीं जानता कि स्क्विड गेम के साउथ-कोरियन निर्देशक ह्वांग दांग को गांव के मजदूरों की उस स्थिति का कितना अंदाजा है. लेकिन उन्होंने इस वेब सीरीज के हवाले से औपनिवेशिक और सामंतवादी व्यवस्था के कुचक्र में फंसे लोगों की दुखती रग पर एक जोरदार छलांग मारा है.

क्या है स्क्विड गेम

आओ कुछ खेल खेलते है. बच्चों वाले खेल. जैसे की कित-कित, लुका-छुपी या चोर-पुलिस. इन खेलों में अगर तुम जीत जाओगे तो तुम्हें अरबों रुपये मिलेंगे और अगर हार गए तो एलिमिनेट यानी आउट हो जाओगे. यहाँ एलिमिनेट का अर्थ था जिंदगी से एलिमिनेट यानी खिलाड़ी की हत्या.

आओ खेले ग्रीन लाइट रेड लाइट
आओ खेलें ग्रीन लाइट रेड लाइट
ये खेल है निराला

घबराइए मत ये खेल बिल्कुल लोकतांत्रिक है. यहां सभी खिलाड़ी बराबर है. किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं और सभी के लिए समान नियम बहाल है. आप जब भी चाहे खेल छोड़ कर जा सकते हैं लेकिन उसके लिए आपको वोट करवा के बहुमत हासिल करना होगा.

लेकिन आप खेल छोड़ कर जिस जीवन में वापस जाएंगे वहां कर्ज, बेरोजगारी, गरीबी और अपमान का नरक है. आप उस नरक में जाने की बजाए अरबों रुपये के लिए अपने जान की बाजी खेल जाते हैं.

ये खून-खराबा इसलिए है क्योंकि कुछ सनकी अमीरों ने इतने पैसे कमा लिए हैं कि अब उन्हें किसी पुरानी व्यवस्था में मजा नहीं आ रहा.

ये प्लॉट पुरानी है. ऐसे कई फिल्म और वेब सीरीज है जो इस फॉर्मैट को फॉलो करते हैं. लेकिन स्क्विड गेम उन सबमें सबसे बेहतर और ताजगी भरा है.

खून-खराबा, सस्पेन्स, थ्रिल, ड्रामा और इमोशन से भरा ये सीरीज मनोरंजक तो है ही, साथ में दिमाग में झनझनाहट पैदा करने वाला भी है.

क्या है खास

पुराने फॉर्मेट में कुछ नया कर के दिखाना हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण रहा है. ह्वांग दांग की स्क्विड गेम को इसलिए तो बिल्कुल भी नहीं देखी जानी चाहिए कि उनको इस वेब सिरीज के लिए लंबा संघर्ष करते हुए अपना लैपटॉप तक बेचना पड़ा.

इसे देखा जाना चाहिए क्योंकि कलाकारों ने एक पुरानी और घिसी-पिटी हो चुकी फिल्म फॉर्मेट में नई ताजगी भर दी है.

स्क्विड गेम फिलहाल नेटफलिक्स पर नंबर एक पर ट्रेंड कर रही है.

रेटिंग

Rating: 3.5 out of 5.
ये लेखक के अपने विचार है. 

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3 thoughts on “सामंतवाद के कुचक्र में फंसे लोगों की दुखती रग पर एक जोरदार छलांग है स्क्विड गेम

  1. सिरीज़ का पता नहीं पर यें लेख पढ़ मज़्ज़ा आया ……

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