एक बार फिर पेगासस मामला चर्चा में शामिल हो गया है . शीर्ष अदालत ने 27 अक्टूबर, बुधवार को उन रिपोर्टों की स्वतंत्र जांच का आदेश दिया जिसमें भारत के पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनीतिक हस्तियों के फोन नंबर सूची में पाए गए थे. जिनमें कुछ इजरायली निगरानी फर्म एनएसओ समूह के ग्राहकों द्वारा निगरानी के लिए चुने गए थे. सर्वोच्च अदालत द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति भारतीयों पर नजर रखने के लिए स्पाइवेयर के इस्तेमाल के आरोपों की जांच करेगी.
एनएसओ का पेगासस मामला एक ऐसा स्पाइवेयर निगरानी उपकरण है जो केवल सरकारों या उसकी एजेंसियों को बेचा जाता है. जिसे मुख्यतः आतंकवाद से लड़ने के लिए बनाया गया है. नागरिकों से संबंधित फोन घुसपैठ करने के लिए इसके उपयोग ने नागरिक स्वतंत्रता के बारे में चिंताओं को फिर से शुरू कर दिया है. फोरेंसिक विश्लेषण ने इस बात कि पुष्टि करते हुए कहा है कि भारत में कम से कम 10 लोगों के फोन हैक किए गए थे.
भारत की शीर्ष अदालत में कई याचिकाएँ दायर की गई थीं जिसकी हफ्ते भर चली कोर्ट की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से स्पाइवेयर की पुष्टि करने को कहा था. अब कोर्ट ने एक समिति का गठन किया है जो इन मुद्दों को लेकर जांच-पड़ताल करेगी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा स्पष्ट तरीके से इनकार के अभाव में कोर्ट के पास लगाए गए आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र पैनल स्थापित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. कोर्ट के द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति की देखरेख करेगी, जिसमें साइबर सुरक्षा, डिजिटल फोरेंसिक, नेटवर्क और हार्डवेयर शामिल हैं. इस समिति की निगरानी एक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.वी. रवीन्द्रन, आलोक जोशी और अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन/अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग की संयुक्त तकनीकी समिति करेगी. कोर्ट ने कहा है कि आठ सप्ताह के भीतर इसपर रिपोर्ट प्रस्तुत होना चाहिए.