ट्वेंटी-20 विश्वकप आधा संपन्न होने को है, लेकिन क्वालिफायर राउंड के शुरुआती 12 मैच छोड़ दें तो असली मुकाबला अब शुरू हुआ है. सुपर-12 चरण के 33 में से 9 मैच हो चुके हैं.
छह-छह के दो ग्रुप में 12 टीम बंटी हैं. क्वालिफायर राउंड में हुए दो बड़े उलटफेर ने टूर्नामेंट की तस्वीर बदल दी. पहला उलटफेर ग्रुप-बी में स्कॉटलैंड से बांग्लादेश की हार था. जिससे ग्रुप-बी में स्कॉटलैंड शीर्ष, जबकि बांग्लादेश दूसरे पायदान पर रहा.
टूर्नामेंट से पहले सभी आश्वस्त थे कि बांग्लादेश ग्रुप-बी में शीर्ष पर रहकर सुपर-12 चरण के ग्रुप-2 का हिस्सा बनेगा, जहां भारत, पाकिस्तान, न्यूजीलैंड और अफ़गानिस्तान पहले से मौजूद थे.
क्वालिफायर राउंड के ग्रुप-ए में श्रीलंका के शीर्ष पर रहने को लेकर भी सभी आश्वस्त थे. आशानुरूप वह शीर्ष पर रही और सुपर-12 के ग्रुप-1 की पांचवीं टीम बनी, जिसमें इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज पहले से थे. लेकिन बांग्लादेश की हार से समीकरण बदल गए. ग्रुप-बी में दूसरे पायदान पर रहकर वह ग्रुप-1 की छठवीं टीम बनी. श्रीलंका और बांग्लादेश दोनों ग्रुप-1 में पहुंचीं, जिससे इसे ‘ग्रुप ऑफ डैथ’ कहा जाने लगा.
दूसरी ओर, ग्रुप-2 में बतौर पांचवीं टीम बांग्लादेश के बजाय स्कॉटलैंड पहुंचा. जिससे ग्रुप-2 में कमजोर टीमों की संख्या बढ़ गई. अफ़गानिस्तान वहां पहले से ही था.
दूसरा बड़ा उलटफेर ग्रुप-ए में नामीबिया ने टेस्ट खेलने वाले देश आयरलैंड को हराकर किया. आयरलैंड विश्वकप से बाहर हो गया और नामीबिया ग्रुप-2 की छठवीं टीम बना, मतलब कि ग्रुप-2 में एक और कमजोर टीम की एंट्री.
यदि बांग्लादेश स्कॉटलैंड को हराकर ग्रुप-बी में शीर्ष पर रहता तो ग्रुप-2 की पांचवी टीम स्कॉटलैंड के बजाय वह होता. स्कॉटलैंड ग्रुप-2 में छठवीं टीम बनता. इससे दोनों ग्रुप समानांतर होते और कड़े मुकाबले देखने मिलते.
इस तरह सुपर-12 चरण के दोनों ग्रुप की तस्वीर साफ हुई. ग्रुप-1 में इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, वेस्ट इंडीज, श्रीलंका और बांग्लादेश हैं. ग्रुप-2 में भारत, पाकिस्तान, न्यूजीलैंड, अफ़गानिस्तान, स्कॉटलैंड और नामीबिया हैं. जानकार ग्रुप-1 को भले ही ‘ग्रुप ऑफ डेथ’ यानी अधिक चुनौतीपूर्ण मानें, लेकिन तकनीकी विश्लेषण करने पर ग्रुप-2 अधिक चुनौतीपूर्ण दिखता है.
ग्रुप-1 में इंग्लैंड अब तक खेले अपने दोनों मैच जीता है. ऑस्ट्रेलिया-श्रीलंका ने एक-एक मैच खेले हैं और जीते हैं. दक्षिण अफ्रीका एक जीता, एक हारा है. वेस्टइंडीज और बांग्लादेश ने अपने दोनों मैच हारे हैं. लेकिन, फिर भी किसी के लिए अब तक सेमीफाइनल के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं और न ही जीतने वाली टीमों का दावा मजूबत हुआ है.
इसके विपरीत ग्रुप-2 में पहले ही मैच के बाद ऐसे समीकरण बन गए कि भारत अपने दूसरे मैच में न्यूजीलैंड से हारा तो विश्वकप से बाहर हो जाएगा. यही हालात अब न्यूजीलैंड के भी सामने हैं. दोनों ही पाकिस्तान से अपना पहला मुकाबला हारे हैं. दोनों 31 अक्टूबर को आपस में भिड़ेंगे. हारने वाला लगभग टूर्नामेंट से बाहर हो जाएगा और दुआ करेगा कि अफ़ग़ानिस्तान, स्कॉटलैंड या नामीबिया कोई बड़ा उलटफेर करके उसे बचा लें.
लिहाजा कथित ‘ग्रुप ऑफ डेथ’ ग्रुप-1 में हर टीम के पास सेमीफाइनल खेलने के अधिक मौके हैं जबकि ग्रुप-2 में 15 में से केवल तीन मैच महत्वपूर्ण हैं. भारत बनाम पाकिस्तान, पाकिस्तान बनाम न्यूजीलैंड और न्यूजीलैंड बनाम भारत. दो हो चुके हैं, एक बाकी है. मतलब कि एक टीम को सिर्फ दो मौके मिले, और पहला मैच हारते ही भारत व न्यूजीलैंड के सामने ‘एक हार और बाहर’ वाले हालात जन्मे. जबकि ग्रुप-1 में हर टीम के पास 5 मौके हैं.
कौन कितना भारी?
सुपर-12 चरण में 30 मैच हैं, 9 निपट चुके हैं. सभी टीम शुरुआती मुकाबले खेल चुकी हैं. फिर भी इन नतीजों को आधार बनाकर कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते. सही आधार यह होगा कि किस देश की 15 सदस्यीय टीम अधिक मजबूत है और सभी का एक-दूसरे खिलाफ हालिया प्रदर्शन कैसा रहा है? इस आधार पर केवल सात देश विश्वकप जीतने की क्षमता रखते हैं. ग्रुप-1 में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और वेस्टइंडीज. ग्रुप-2 में भारत, पाकिस्तान और न्यूजीलैंड.
ग्रुप-1 के समीकरण
ग्रुप चरण में स्कॉटलैंड से हारकर संघर्ष करके सुपर-12 तक पहुंचे बांग्लादेश को श्रीलंका और इंग्लैंड ने बुरा धोया. टीम पूरी तरह शाकिब पर निर्भर है. जीते दोनों मैच में शाकिब ही मैन ऑफ द मैच बने. आगे ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और वेस्टइंडीज से सामना है.
भले ही विश्वकप से पहले बांग्लादेश ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को घरेलू सीरीज में क्रमश: 4-1 और 3-2 के अंतर से हराया था, फिर भी उससे अधिक उम्मीद नहीं हैं क्योंकि तब ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के प्रमुख खिलाड़ी नहीं खेले थे. पिचें भी बांग्लादेशी स्पिन गेंदबाजी के अनुकूल और बल्लेबाजी के लिए मुश्किल थीं, जिनकी आलोचना स्वयं बांग्लादेशी खिलाड़ी शाकिब अल हसन ने की.
2014 की विश्वविजेता श्रीलंका ग्रुप चरण में तीनों मुकाबले (नामीबिया, आयरलैंड और नीदरलैंड के खिलाफ) जीती, सुपर-12 में बांग्लादेश को हराया, लेकिन अभी उसका सामना किसी शीर्ष वरीय टीम से नहीं हुआ है. इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और वेस्टइंडीज से सामना बाकी है. 2016 विश्वकप के बाद से श्रीलंका इनके खिलाफ 28 मुकाबले खेलकर 22 में हारा है.
उसके पास कोई स्टार खिलाड़ी नहीं है. ताकत है कि हर जीत में एक नया नायक उभरता है और यही कमजोरी भी है कि वह नायक अगले मैच में फ्लॉप हो जाता है. प्रदर्शन में इसी अनिरंतरता के चलते एकदिवसीय और टी-20 विश्वकप की पूर्व विजेता श्रीलंका को क्वालिफायर राउंड खेलना पड़ा.
अब बात ग्रुप-1 की उन चार टीम की जिनमें विश्वकप जीतने की क्षमता है. पहले बात मौजूदा विश्वविजेता वेस्टइंडीज की जो दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड से शुरुआती दोनों मैच हारकर भी दौड़ में कायम है, बशर्ते कि तीनों बचे मैच बड़े अंतर से जीते. फिर उसे अन्य टीमों की हार-जीत पर निर्भर होकर अपने पक्ष में समीकरणों के बनने का इंतजार करना होगा.
श्रीलंका-बांग्लादेश को हराना शायद मुश्किल न हो. असल चुनौती ऑस्ट्रेलिया होगी. लेकिन विंडीज ने जुलाई में ही ऑस्ट्रेलिया को 4-1 से सीरीज हराई थी, जिसके चलते वह मनोवैज्ञानिक बढ़त में रहेगी. वो बात अलग है कि उस ऑस्ट्रेलियाई टीम में वर्तमान ऑस्ट्रेलियाई आक्रमण के आधे खिलाड़ी नहीं खेले थे.
दुनियाभर में लीग क्रिकेट में झंडे गाड़ चुके कैरोन पोलार्ड, क्रिस गेल, आंद्रे रसेल, ड्वेन ब्रावो, शिमरॉन हेटमायर, इविन लुईस और निकोलस पूरन जैसे नाम टीम में हैं. फिर भी टीम संघर्ष कर रही है तो एक कारण यह है कि टीम उन्हीं खिलाड़ियों पर निर्भर है जिन्होंने 2012 और 2016 में विश्वकप जिताया था. गेल 42, ब्रावो और सिमंस 38 साल के हैं. उम्र का असर उनके प्रदर्शन पर दिखता है. 35 के पोलार्ड और 33 के रसेल भी पहले जितने फिट नज़र नहीं आते.
मार्लोन सेमुअल्स
सबसे अहम कि दो विश्वकप जिताने वाले मार्लोन सेमुअल्स जैसा कोई बल्लेबाज नहीं है जो कि शुरुआती एक-दो विकेट जल्दी गिरने के बाद क्रीज पर चट्टान-सा अड़कर ढहती पारी संभाल सके और फिर बड़े-बड़े हिट मारे. पिछले दो विश्वकप जीतने में स्पिनर सेमुअल बद्री की गेंदबाजी अहम थी. सुनील नारायण और सुलेमान बेन उन्हें बेहतरीन सहयोग देते थे. अभी अकील हुसैन अच्छी गेंदबाजी कर रहे हैं लेकिन उनका साथ देने नारायण या बेन जैसा कोई नहीं है.
पिछले तीन विश्वकप में टीम के पास गेंदबाजी के सात-आठ विकल्प रहते थे. अब सात विकल्प दिखते तो हैं लेकिन गेल गेंदबाजी करते नहीं, पोलार्ड पार्ट-टाइम गेंदबाज नज़र आते हैं. पांचवा गेंदबाज तक चुनौती है क्योंकि रसेल पहले भी कभी खास प्रभावी गेंदबाज नहीं थे, अब तो फिटनेस के चलते गेंदबाजी में धार ही नहीं दिखती.
ब्रावो अकेले प्रभावी हैं लेकिन 38 की उम्र में वैसी धार नहीं दिखती जो पांच-सात साल पहले थी. 37 वर्षीय रवि रामपॉल छह साल बाद अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में वापस आए हैं, लेकिन कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ा है.
वेस्टइंडीज
वेस्टइंडीज के लिए आगे सफर मुश्किल है क्योंकि वैकल्पिक खिलाड़ियों का भी हालिया प्रदर्शन प्रभावहीन है. दोनों मैच में फ्लॉप रहे लेंडल सिमंस की जगह फ्लेचर हैं जिन्होंने हालिया संपन्न कैरेबियन प्रीमियर लीग (सीपीएल) के 12 मैच में महज 21 की औसत से 230 रन बनाए थे. उन्होंने केवल टूर्नामेंट की शुरुआत में एक अच्छी पारी (81 नाबाद) खेली थी. अन्य 11 मैच में 13 की औसत से केवल 149 रन बनाए.
गेल की जगह सीपीएल में सर्वाधिक रन बनाने वाले रोस्टन चेज खेल सकते हैं, जो अच्छे स्पिनर भी हैं. उन्होंने अब तक अंतर्राष्ट्रीय टी-20 क्रिकेट नहीं खेला है, जबकि एकदिवसीय और टेस्ट में उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. 15 सदस्यीय टीम में बतौर विकल्प दो तेज गेंदबाज भी हैं, ओबेड मकॉय और ओसेन थॉमस. वे रामपॉल का विकल्प बन सकते हैं.
दक्षिण अफ्रीका की बात करें तो उसके इंग्लैंड, श्रीलंका और बांग्लादेश से मुकाबले बाकी हैं. तीनों मैच जीतने पर सेमीफाइनल खेलने की संभावनाएं बनती हैं, लेकिन इंग्लैड ने पिछले 9 में से 7 मैच उसे हराए हैं.उसके सबसे अनुभवी खिलाड़ी क्विंटन डि कॉक ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ मुद्दे पर यदि विश्वकप से नाम वापस लेते हैं तो अफ्रीकी संभावनाएं क्षीण होंगी. वेन डर डुसेन और मार्करैम अच्छी फॉर्म में हैं, सारा दारोमदार उन पर होगा.
डेविड मिलर की क्षमताएं सभी जानते हैं. कगिसो रबाडा और एनरिक नॉर्खिया के रूप में टीम के पास विश्व की सबसे घातक तेज गेंदबाजी जोड़ी में से एक है. डेन प्रिटोरियस, केशव महाराज और विश्व के नंबर एक गेंदबाज तबरेज शम्सी अच्छी लय में हैं. बैंच पर लुंगी एनगिडी भी बैठे हैं. लेकिन, टीम की संभावनाएं इसलिए कुंद हैं क्योंकि गेंदबाजी में छठा विकल्प नहीं है.
मार्करैम पार्ट-टाइम गेंदबाज हैं, इसलिए दुधारी तलवार सरीखे हैं. अफ्रीकी बल्लेबाजी भी छठवें नंबर तक है, सातवें नंबर पर बॉलिंग ऑलराउंडर प्रिटोरियस हैं जिनसे बल्लेबाजी की खास उम्मीद नहीं लगा सकते. गौरतलब यह भी है कि कप्तान टेंबा बावुमा की भी बल्लेबाजी टीम में बने रहने लायक नहीं है. वे कप्तान हैं इसलिए टीम में हैं. इससे बल्लेबाजी और कमजोर होती है. मतलब गेंदबाजी-बल्लेबाजी में एक-एक विकल्प कम हैं.
समाधान के लिए ऑलराउंडर विहान मुल्डर को खिलाएं भी तो किसकी जगह? डि कॉक की अनुपस्थिति में बतौर विकेटकीपर हैनरिक क्लासेन खेलने जरूरी हैं. रीजा हैंड्रिक्स या मिलर को हटाने से बल्लेबाजी कमजोर होगी. इसलिए रैंकिग का शीर्ष गेंदबाज और टॉप-20 के चार बल्लेबाज (डि कॉक, मार्करैम, डुसेन और हेंड्रिक्स) वाले अफ्रीका के पास खिलाड़ी भले ही दमदार हों लेकिन टीम संतुलित नहीं है. इसलिए उसकी विश्वकप जीतने की संभावनाएं कम हैं.
लेकिन, इंग्लैंड हर लिहाज से संतुलित टीम है. बटलर-रॉय की विस्फोटक ओपनिंग जोड़ी है. बेयरस्टो भी विस्फोटक हैं, जो मध्यम क्रम में खेलने के साथ-साथ ओपनिंग भी कर सकते हैं. डेविड मलान विश्व रैंकिंग में नंबर एक टी-20 बल्लेबाज हैं. कप्तान मोर्गन फॉर्म में भले न हों, लेकिन अपनी कप्तानी से बल्लेबाजी की क्षतिपूर्ति कर देते हैं. रैंकिंग के शीर्ष 18 बल्लेबाजों में से पांच इंग्लैंड के हैं, जिससे उसकी बल्लेबाजी की मजबूती पता चलती है.
बतौर ऑलराउंडर मोईन अली, लियाम लिंविंगस्टोन और क्रिस वोक्स हैं. अली अच्छी फॉर्म में हैं. लिविंगस्टोन ने हाल ही में टी-20 अंतर्राष्ट्रीय में शतक जड़ा था. क्रिस जॉर्डन और आदिल राशिद दोनों बॉलिंग ऑलराउंडर हैं और बल्लेबाजी में अच्छे कैमियो खेल लेते हैं.
मतलब कि इंग्लैंड दसवें नंबर तक बल्लेबाजों से उम्मीद लगा सकता है. गेंदबाजी में भी छठा विकल्प मौजूद है. तेज गेंदबाजी फिलहाल वोक्स, जॉर्डन व मिल्स और स्पिन आदिल, मोईन और लिविंगस्टोन के बूते है. बतौर विकल्प, शानदार लय में चल रहे तेज गेंदबाज मार्क वुड, डेविड विले, ऑलराउंडर टॉम करेन और बल्लेबाज सैम बिलिंग्स हैं. उलटफेर न होने की स्थिति में इंग्लैंड विश्वकप जीतने का सबसे मजबूत दावेदार है.
ऑस्ट्रेलिया सबसे अधिक संतुलित टीम है. चुनौती बस यह है कि उसके खिलाड़ियों ने विश्वकप से पहले अंतर्राष्ट्रीय टी-20 क्रिकेट ज्यादा नहीं खेला है. विश्व रैंकिंग में तीसरे पायदान का बल्लेबाज आरोन फिंच, छठवें-सातवें पायदान के गेंदबाज एडम जंपा व आस्टिन एगर और छठवें-सातवें नंबर के ऑलराउंडर ग्लेन मैक्सवैल व मिशेल मार्श हैं. मार्कस स्टोइनिस भी स्टार ऑलराउंडर हैं.
डेविड वॉर्नर और स्टीवन स्मिथ किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. टीम में इकलौते वॉर्नर फॉर्म में नहीं हैं लेकिन फॉर्म में लौटे तो विश्वकप की तस्वीर बदल सकते हैं. उनके फॉर्म न पाने पर या अन्य किसी बल्लेबाज के फॉर्म खोने या चोटिल होने पर ऑस्ट्रेलिया मुश्किल में होगा क्योंकि 15 सदस्यीय टीम में बल्लेबाजी विकल्प केवल विकेटकीपर-बल्लेबाज जॉश इंग्लिश हैं जो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेले हैं. कमिंस, हेजलवुड और स्टार्क के रूप में टीम के पास विश्व की सबसे घातक तेज गेंदबाजी तिकड़ी है. बतौर विकल्प केन रिचर्डसन हैं.
स्पिन विभाग में जम्पा और एगर की रैंकिंग ऊपर बता ही दी. अभी एकादश में जम्पा हैं और एगर व मिशेल स्वैप्सन बैकअप हैं. कंगारू टीम अधिक संतुलित है क्योंकि एकादश में तीन ऑलराउंडर होने से सात गेंदबाजी विकल्प हैं. बल्लेबाजी में आठवें क्रम पर कमिंस रन बनाने में समर्थ हैं, आईपीएल में हमने देखा था. जम्पा की जगह एगर खेलते हैं तो एक और बल्लेबाजी विकल्प बढ़ जाएगा.
इस तरह ग्रुप-1 में सर्वाधिक संतुलित प्लेइंग-11 ऑस्ट्रेलिया की है, लेकिन सर्वाधिक संतुलित 15 सदस्यीय टीम इंग्लैंड की है.
ग्रुप-2 के समीकरण
जैसा कि ऊपर बताया, ग्रुप-2 में केवल तीन अहम मुकाबले हैं. दो हो चुके हैं. पाकिस्तान दोनों जीतकर लगभग सेमीफाइनल में पहुंच गया है. अफ़ग़ानिस्तान ने भी स्कॉटलैंड को बहुत बड़े अंतर से हराया था. फिर भी नहीं लगता कि वह पाकिस्तान, भारत या न्यूजीलैंड को हरा पाएगा क्योंकि उसका विनिंग रिकॉर्ड भले अच्छा हो और उसके पास राशिद खान, मोहम्मद नबी व मुजीब-उर-रहमान जैसे फ्रेंचाइजी क्रिकेट के जाने-पहचाने नाम हों, लेकिन चोटी की सातों टीम के खिलाफ वह क्रिकेट नहीं खेला है.
अपने ग्रुप के भारत, पाकिस्तान और न्यूजीलैंड के खिलाफ पांच सालों से उसने कोई मैच नहीं खेला. सेमीफाइनल खेलने के लिए उसे स्कॉटलैंड और नामीबिया के अलावा भारत, पाकिस्तान व न्यूजीलैंड में से किन्हीं दो को हराना होगा या फिर न्यूजीलैंड-भारत के मैच में जीतने वाली टीम को हराए तो नेट रन रेट के आधार पर सेमीफाइनल खेल सकता है क्योंकि स्कॉटलैंड पर बड़ी जीत से उसका नेट रन रेट आसमान पर है.
यदि भारत, न्यूजीलैंड व अफ़ग़ानिस्तान तीन-तीन मैच जीतें और अफ़गानिस्तान कोई मैच बड़े अंतर से न हारे तो उसके सेमीफाइनल खेलने की संभावनाएं बनेंगी. बता दें कि 2016 विश्वकप जीतने वाला वेस्टइंडीज उस टूर्नामेंट में इकलौता मैच अफ़ग़ानिस्तान से ही हारा था. इसलिए अफ़ग़ानियों में उलटफेर करने की क्षमता तो है, लेकिन संभावनाएं कम हैं.
ग्रुप-2 में सिर्फ पाकिस्तान, न्यूजीलैंड और भारत ही विश्वकप जीतने की क्षमता रखते है. पाकिस्तान लगभग सेमीफाइनल में है. मोहम्मद रिजवान और कप्तान बाबर आज़म उसकी ताकत हैं. विश्व बल्लेबाजी रैंकिंग में आज़म दूसरे और रिज़वान सातवें नंबर पर हैं. रिज़वान ने पिछले 17 मैच में 87 के औसत से 953 रन बनाए हैं. विश्व का कोई भी बल्लेबाज उनके करीब नहीं फटकता. बल्लेबाजी में फख़र जमां भी हैं और आसिफ अली.
पाकिस्तान के पास चार ऑलराउंडर मोहम्मद हफीज़, शोएब मलिक, इमाद वसीम और शादाब खान हैं. शाहीन अफरीदी, हसन अली और हैरिस राउफ तेज गेंदबाज हैं. गेंदबाजी में सात विकल्प हैं और बल्लेबाजी में आठ. नौवें क्रम पर हसन अली भी छोटी-छोटी तेज पारी खेल सकते हैं.
बतौर विकल्प 15 सदस्यीय टीम में बल्लेबाज हैदर अली, तेज गेंदबाजी ऑलराउंडर मोहम्मद वसीम, स्पिन ऑलराउंडर मोहम्मद नवाज़ और पूर्व कप्तान सरफराज अहमद हैं. कागज पर तो पाकिस्तानी एकादश और 15 सदस्यीय टीम बेहद संतुलित हैं लेकिन नकारात्मक पक्ष यह है कि आसिफ अली, हैदर अली, मोहम्मद वसीम व मोहम्मद नवाज़ चारों ही अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अनुभवहीन हैं जिन्होंने अब तक कोई खास छाप नहीं छोड़ी है.
न्यूजीलैंड
टीम संतुलन के लिहाज से न्यूजीलैंड, भारत पर भारी है. पार्ट-टाइमर ग्लेन फिलिप्स समेत उसके पास सात गेंदबाजी विकल्प हैं. बल्लेबाजी रैंकिंग में कॉन्वे पांचवे तो गुप्टिल 12वें पर हैं. विलियमसन के परिचय की जरूरत नहीं. तेज गेंदबाजी में दसवीं रैंकिंग के साउदी और बोल्ट विश्वस्तरीय हैं. चोटिल फर्ग्युसन विश्वकप से बाहर हो गए हैं, लेकिन बतौर विकल्प जेमिसन और एडम मिल्ने मौजूद हैं. स्पिन में ईश सोढ़ी और मिशेल सेंटनर हैं. सोढ़ी की गेंदबाजी रैंकिंग 13 और सेंटनर की ऑलराउंडर रैंकिंग 19 है. तेज गेंदबाजी में ऑलराउंडर जेम्स नीशम और डैरेल मिशेल भी हैं.
विकेटकीपर टिम सेफर्ट भी ठीक-ठाक बल्लेबाज हैं. लेकिन, कॉन्वे और विलियमसन को छोड़कर बाकी बल्लेबाजों के प्रदर्शन में अनिरंतरता न्यूजीलैंड के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. जेमिसन, मिल्ने के अलावा 15 सदस्यीय टीम में स्पिनर टोड एस्टल और बल्लेबाज मार्क चैपमेन भी हैं.
न्यूजीलैंड भले ही पाकिस्तान से हार गया हो लेकिन उसकी 15 सदस्यीय टीम पाकिस्तान से ज्यादा मजबूत है, बस उसके खिलाड़ियों के प्रदर्शन में निरंतरता नहीं है. फिर भी न्यूजीलैंड की खासियत है कि वह साधारण खिलाड़ियों के सहारे ही बड़ी उपलब्धियां हासिल कर लेती है.
भारत के पास रोहित शर्मा, विराट कोहली और लोकेश राहुल जैसे दिग्गज हैं, लेकिन टीम असंतुलित है. राहुल को छोड़ दें तो सभी बल्लेबाज या तो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में नए हैं या फिर फॉर्म से जूझ रहे हैं. सूर्यकुमार यादव नए भी हैं, फॉर्म में भी नहीं हैं. रिषभ पंत भी लीग और सीमित ओवर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लंबे समय से प्रभाव नहीं छोड़ सके हैं. हार्दिक पांड्या ऑलराउंडर हैं लेकिन गेंदबाजी करते नहीं और बल्लेबाजी उनसे होती नहीं. बतौर ऑलराउंडर रविंदर जडेजा हैं, बाकी चार गेंदबाज हैं.
इसलिए गेंदबाजी में छठा विकल्प न होना ही भारत की सबसे बड़ी कमजोरी है. ऊपर से तुर्रा ये कि भुवनेश्वर कुमार भी लंबे समय से फॉर्म में नहीं हैं. वैकल्पिक खिलाड़ियों में बतौर तेज गेंदबाज इकलौते शार्दुल ठाकुर 15 सदस्यीय टीम में हैं. वे कामचलाऊ बल्लेबाजी भी कर लेते हैं और हार्दिक या भुवनेश्वर में से किसी एक का विकल्प बन सकते हैं. दूसरे विकल्प के रूप में भारत को मजबूरन बल्लेबाज या स्पिनर खिलाना होगा.
जडेजा भी अगर बुरा प्रदर्शन करते हैं तो भी उन्हें खिलाना मजबूरी रहेगा. उनकी जगह बल्लेबाज खिलाना संभव नहीं और गेंदबाज खिलाने पर पहले से ही कमजोर बल्लेबाजी और कमजोर होगी.
सूर्यकुमार की जगह ईशान किशन खेल सकते हैं, लेकिन उनका हालिया प्रदर्शन सिर्फ ओपनिंग में अच्छा रहा है. अत: प्लेइंग-11 में उनकी जगह बनाना टीम प्रबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण रहेगा. बतौर स्पिनर वरुण चक्रवर्ती की जगह अश्विन खेल सकते हैं.15 सदस्यीय टीम में स्पिनर राहुल चाहर भी हैं जो आईपीएल में खराब फॉर्म के चलते मुंबई इंडियंस की एकादश से बाहर कर दिए गए थे.
भारत की समस्या अधिकांश खिलाड़ियों का फॉर्म में न होना है. सारी उम्मीदें रोहित, कोहली व राहुल की बल्लेबाजी से हैं. जबकि कोहली पूरी तरह लय में नहीं हैं. रोहित भी आईपीएल में प्रभावहीन थे, पाकिस्तान के खिलाफ भी पहली गेंद पर चलते बने. अकेले राहुल बचते हैं.
न्यूजीलैंड के खिलाफ ‘करो-मरो’ वाले मैच में भारत के लिए मनोवैज्ञानिक बढ़त यह है कि उसने न्यूजीलैंड के खिलाफ 2016 विश्वकप के बाद खेले 11 में से 8 मैच जीते हैं और न्यूजीलैंड मैदानों पर ही पिछली टी-20 सीरिज 5-0 से जीती थी.
सारे आकलन के बाद ग्रुप-1 में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड और ग्रुप-2 में न्यूजीलैंड और पाकिस्तान सर्वाधिक संतुलित टीम हैं. भारत के पास बड़े खिलाड़ी तो हैं लेकिन अपनी फॉर्म से जूझ रहे हैं. टीम की सबसे बड़ी खामी छठे गेंदबाज का विकल्प न होना है. यहां तक कि भारत के पास अफ्रीका की तरह कोई पार्ट-टाइमर गेंदबाज भी नहीं है. सुपर-12 में भारत एकमात्र ऐसी टीम है जिसकी 15 सदस्यीय टीम में सिर्फ एक ऑलराउंडर (जडेजा) है.
इसलिए यह जिक्र जरूरी हो जाता है कि भारत की सभी विश्वकप जीत में ऑलराउंडर अहम रहे हैं. 1983 में कपिल देव और 2007 व 2011 में युवराज सिंह. वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, इंग्लैंड की विश्वकप विजयों में भी ज्यादातर मौकों पर ऑलराउंडर ही निर्णायक साबित हुए थे. इसलिए भारत कागज पर भले मजबूत दिखे, लेकिन टीम संतुलन के लिहाज से कमजोर नज़र आता है.
भारत, दक्षिण अफ्रीका और वेस्टइंडीज के हालात लगभग समान हैं. विकल्पों का अभाव है. लेकिन, अकेले दम पर मैच पलटने वाले स्टार खिलाड़ियों की भरमार है. पर क्रिकेट एक टीम गेम है. इस लिहाज से ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड सबसे मजबूत हैं. अन्य टीमों को इन्हीं से लड़ने की तैयारी करनी है. बाकी टी-20 क्रिकेट में कब, किस रोज, कौन-सा खिलाड़ी पासा पलट दे, कह नहीं सकते.