पंचायत चुनाव के शोर में दब गया छठ का उत्साह

चुनाव प्रचार, जिसकी चर्चा चुनाव की तारीख की घोषणा होने के साथ शुरू हो जाती है. इसी के साथ इस वर्ष बिहार में होने वाले पंचायत चुनाव का प्रचार-प्रसार जोरों-शोरों से चालू हैं. इस साल चुनावी लहरों के बीच बिहार का प्रमुख त्योहार छठ पर्व भी शामिल है.

छठ पर्व बिहारियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसकी कई मान्यताएं.

नहाय-खाय से लेकर पारन तक औरतें और पुरुष छठ का व्रत कुल 4 दिनों तक रखते हैं. इनमें से कई नियमों के पालन सख्ती से किए जाते हैं.

इस व्रत की मान्यताएँ, आज ना ही सिर्फ बिहार या देश में ही हैं बल्कि विदेश में भी मौजूद है. एक ओर इतनी महत्व और मान्यताएँ होने के बावजूद भी इन चुनावों के प्रचार की वजह से छठ को लेकर लोगों में घाटों पर वह उत्साह नहीं है जो कि अक्सर होती है.

परिवार के काम करने वाले सदस्य अपने व्यस्त समय में से 4 दिन निकालकर छठ पर्व की खुशियों में शामिल होने के लिए दूर-दूर से बड़े शहरों से वापस आते हैं. और इस वर्ष उन्हें वह उत्साह महसूस नहीं हो रही.

जहां कई दिनों पहले दिवाली के मौके से ही छठ पर्व के गीत बजने शुरू हो जाते हैं तो वहीं इस वर्ष प्रचारों के कारण कोई भी गीत व वैसी रौनक नहीं देखने को मिल रही है जो कि हमेशा रहती है.

पिछले साल कोरोना वायरस के कारण लोग लॉकडाउन की वजह से और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए कई पर्व व त्योहारों मनाने से वंचित रह गए, और अगर जिन्होंने मनाया भी उन्हें अपने-अपने घरों में अलग-अलग व्यवस्थाएँ करनी पड़ी व बहुत कुछ संभालना भी पड़ा.

पर्व की रौनक बाजार,सड़कों,गलियों हर जगह खूब जोड़ो-शोरों से रहती है.

लेकिन इस साल न ही गानें, सजावटे और साफ-सफाई उस हिसाब से की गई है जैसी होनी चाहिए थी. छठ में घाट पर जो रौनक रहती हैं वैसी रौनक बिलकुल भी नहीं है.

पंचायत चुनाव के प्रत्याशी इस साल अपने प्रचार में बहुत मेहनत और कई नए तरीकों से मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं, इसी कारण त्योहार में वह चहल-पहल नहीं हैं.

चुनावी प्रचार में जहाँ नेताओं को त्योहारों को अपना शस्त्र बनाकर उसे प्रचारों में डालना चाहिए था तो वहीं आज इनलोगों के प्रचारों की वजह से कई भक्तों को सजावटों, उत्साह व गीत से दूर रहना पड़ा.

चुनाव भी एक राज्य के लिए काफी जरूरी है मगर नेताओं व कार्यकर्ताओं को चुनाव की तैयारी में अपने राज्य की संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए और बाकी लोगों की भक्ति व उत्साह पर भी बाधा नहीं डालनी चाहिए.
एक इंसान की संस्कृति उसके लिए उसकी कई अन्य महत्वपूर्ण चीजों में ही शामिल होती है. इसीलिए उसमें उल्लंघन नहीं डालना चाहिए और पर्व त्यौहारों को सही तरीके से मनाने की आज़ादी उसे देनी चाहिए.

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