रविशंकर उपाध्याय।
होली में हर घर में बनता है पुआ। वही जिसे पूरा भारत/पाकिस्तान/बांग्लादेश मालपुआ भी कहता है। वैदिक आहार परंपरा में सबसे पहले बने स्वादिष्ट व्यजनों में से एक। इसे वेदों में अपूप बताया गया है तो बौद्धकाल में इसे अपूपा की संज्ञा दी गई है। आधुनिक इतिहास में भारत का सर्वाधिक चलन वाला मिष्ठान व्यंजन। जिसके बिना हमारे त्योहार अधूरे हैं। यह ऐसा पकवान है जो मैदा, खोया व चीनी से बनाया जाता है। लेकिन जातक कथाओं के अनुसार इसे चावल के आटे, शर्करा, शहद और घी से बनाया जाता था। इल्लिस जातक में इसकी विधि कुछ ऐसे ही दी गई है। जगन्नाथ पुरी में जगन्नाथ प्रभु को सुबह के भोग के रूप में चढ़ाया जाता है, वहां इसे अमालू कहा जाता है। बंगाली घरों में यह पौष संक्रांति के दौरान तैयार किया जाता है। बिहार झारखंड में यह होली के दौरान मटन करी के साथ भी पेश किया जाता है।
मालपुआ के बनाने के लिए कुछ क्षेत्रों में इसके मिश्रण में पके केले को मसलकर, नारियल, आटा, और पानी या दूध डालकर तैयार किया जाता है। इस मिश्रण को स्वादिष्ट बनाने के लिए कभी कभी इसे इलायची के साथ संशोषित किया जाता है। मालपुए के बिहारी संस्करण में तलने से पहले घोल में चीनी डाली जाती है। जबकि ओड़िशा में तले गए पुए को चीनी के चाशनी में डाला जाता है। छत्तीसगढ़ में सतनामी सम्प्रदाय के लोग भी विशेष अवसरों पर मालपुआ खाते हैं।
रमजान के पवित्र मुस्लिम महीने के दौरान मालपुआ एक प्रसिद्ध पकवान है। भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में मुस्लिम परिवार उपवास तोड़ने के लिए (इफ्तार के दौरान) मालपुआ तैयार करते हैं। वैदिक काल में जौ के आटे को घी में तलकर या पानी में उबालकर और फिर शहद में डुबाया जाता था। वर्तमान मालपुआ ने इस वैदिक नाम और इसकी तैयारी की प्रक्रिया दोनों को लगभग बरकरार रखा है।