आज के समय में सोशल मीडिया का विस्तार काफी तेजी से हो रहा है और इसमें बच्चों की मौजूदगी रफ्तार पकड़ रही है. देखा जा रहा है कि बच्चे छोटी उम्र से ही स्मार्टफोन के आदी होते जा रहे हैं और अपना अधिक समय इनके साथ बिताना पसंद कर रहे हैं. वहीं, बच्चों पर सोशल मीडिया के अच्छे और बुरे प्रभाव दोनों देखे गए हैं. सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव के अनेक कारक होते हैं जिसे लोग नजरअंदाज करते नजर आते हैं.
मानसिक स्वास्थ्य पर असर
सोशल मीडिया का अधिक उपयोग बच्चों की मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डाल सकता है. इस पर हुए एक शोध से जानकारी मिलती है कि स्मार्टफोन के अधिक उपयोग से बच्चों में मानसिक परेशानी की भी बढ़ोतरी हो सकती है. उनके संज्ञानात्मक (cognitive) नियंत्रण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
नींद की कमी में योगदान
सोशल मीडिया के अधिक उपयोग से बच्चों की नींद में भी कमी देखी गई है. दरअसल, जो बच्चे देर रात कर सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं, वो और देरी से सोते हैं और फिर सुबह उन्हें स्कूल जाने के लिए जल्दी उठना पड़ता है, इससे उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती है.
अवसाद का कारण
सोशल मीडिया बच्चों में अवसाद का भी कारण बन सकता है.इस बात की पुष्टि एक शोध में होती है. बताया जाता है कि जो बच्चे रात में अधिक समय तक फोन का इस्तेमाल करते हैं, उनकी नींद प्रभावित होती है और वो अवसाद का शिकार हो सकते हैं.
चिंता का कारण
एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध के मुताबिक, सोशल मीडिया का अधिक उपयोग बच्चों में चिंता का भी कारण बन सकता है. प्रायः मनोवैज्ञानिक अपने ट्रीटमेंट के दौरान बच्चों में चिड़चिड़ापन का मुख्य वजह सोशल मीडिया को मानते हैं. सोशल मीडिया का अधिक उपयोग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. इसके परिणामस्वरूप सोशल मीडिया बच्चों में चिंता की समस्या भी उत्पन्न कर सकता है.
पढ़ाई-लिखाई पर प्रभाव
सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव में उनकी पढ़ाई-लिखाई भी शामिल है. इस बारे में शोध बताते हैं कि स्मार्टफोन के अधिक उपयोग से बच्चों की सामाजिक कार्य प्रणाली के साथ-साथ स्कूली परफॉर्मेंस भी प्रभावित हो सकती है.
साइबर बुलिंग का खतरा
सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों में साइबर बुलिंग भी शामिल है. साइबर बुलिंग यानी इंटरनेट माध्यमों से किसी को तंग करना या उसका मजाक उड़ाना या उसे नीचा दिखाना. यहाँ तक कि साइबर बुलिंग आत्महत्या को भी बढ़ावा दे सकता है.
तनाव की समस्या
सोशल मीडिया के प्रभावों पर हुए अध्ययन के मुताबिक, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म का लंबे समय तक उपयोग तनाव को बढ़ाने का काम कर सकता है.
इंटरनेट की लत
बच्चे अगर अपना अधिकांश समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं, तो इससे उन्हें इसकी लत भी लग सकती है. इसका नकारात्मक असर बच्चों की दिनचर्या पर पड़ सकता है. इससे बच्चे पूरा समय फोन के साथ ही बिता सकते हैं. इस कारण समय पर खाना खाने की आदत प्रभावित हो सकती है साथ ही उनकी नींद का समय भी बिगड़ सकता है. इस वजह से उनकी सेहत भी खराब हो सकती है.
परिजनों से दूरी
सोशल मीडिया का अधिक उपयोग बच्चों और माता-पिता के बीच में दूरी बढ़ा सकता है. इससे घर में मां-पापा के होते हुए भी बच्चे फोन के साथ अपना ज्यादा समय गुजार देंगे, जिससे पारिवारिक दूरी बढ़ सकती है.
समय की बर्बादी
इसमें तो कोई दो राय नहीं कि सोशल मीडिया का अधिक उपयोग समय की बर्बादी है. खासकर बच्चों के लिए. दरअसल, एक बार जब बच्चों को इसकी आदत लग जाती हैं तो वे अपना सारा दिन इसी में गुजार देंगे और समय का सदुपयोग नहीं करेंगे.
हिंसक प्रवृत्ति में बढ़ोतरी
सोशल मीडिया बच्चों में हिंसा को भी बढ़ावा दे सकता है. अगर बच्चे फेसबुक या फिर यूट्यूब पर हिंसक चीजें देखेंगे, तो उनके अंदर भी वैसी आदतों का विकास होना लाज़मी है इससे वो घर में भी अपने परिवार वालों के साथ वैसा ही व्यवहार कर सकते हैं.
एकाग्रता में कमी
एक बार भी अगर बच्चों को सोशल मीडिया की आदत लग गई, तो इसका असर उनकी एकाग्रता पर भी पड़ सकता है. उदाहरण के तौर पर, अगर बच्चा होमवर्क करने बैठता है और उसके आस-पास फोन रखा है, तो बार-बार फोन चलाने के बारे में ही सोचेगा और उसका ध्यान विचलित होता रहता है तथा बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगेगा.
इसके अलावा, अगर माता-पिता उसे छोटी-छोटी चीजों की पढ़ाई के लिए भी फोन का इस्तेमाल करने के लिए छोड़ देते हैं, तो वैसे में वह अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना छोड़ देता और पूरी तरह फोन पर निर्भर हो जाएगा.
बच्चों में सोशल मीडिया को लेकर क्रेज काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसका इन पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ रहा है. ऐसे में जरूरी है कि सोशल मीडिया कंपनियों के लिए नए नियम बनाए जाएं, जिससे बच्चों को इन प्रभावों से बचाया जा सके.
अमेरिका ने पेश किया बिल
इस कड़ी में सबसे पहला कदम अमेरिका ने उठाया है. यहां सोशल मीडिया के बच्चों पर पड़ रहे नकारात्मक असर को देखते हुए सोशल प्लेटफॉर्म्स पर सख्ती के लिए ‘किड्स ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट-2022’ पेश किया है. यह बिल रिपब्लिकन पार्टी की मार्शा ब्लैकबर्न और डेमोक्रेटिक सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल ने पेश किया है. ब्लैकबर्न का कहना है कि सोशल मीडिया का नकारात्मक असर बच्चों और किशोरों पर ज्यादा पड़ रहा है. इसकी टेक कंपनियों को जरा भी चिंता नहीं है, इसलिए नकेल कसना जरूरी है.
प्राइवेसी का देना होगा विकल्प
बिल के मुताबिक, सोशल मीडिया कंपनियों को यूजर्स को प्राइवेसी विकल्प देना होगा. ‘लत’ वाले फीचर्स को डिसेबल करने के साथ पेज या वीडियो को लाइक करने से ऑप्ट आउट करने की सहूलियत देनी होगी. वहीं, कंपनियों को ऐप में ऐसे टूल्स देने होंगे, जिनसे अभिभावकों को पता चल सके कि बच्चे ने सोशल मीडिया पर कितना समय बिताया है. इससे वे बच्चों ऐप के लत से बचा पाएंगे.
वैज्ञानिक डेटा पर करेंगे स्टडी
सोशल मीडिया कंपनियों को बच्चों से संबंधित डेटा शिक्षण, शोध संस्थानों और निजी शोधकर्ताओं के साथ शेयर करना होगा. इसके बाद शोधकर्ता इस डेटा का इस्तेमाल कर, सोशल मीडिया का बच्चों की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर पड़ रहे नुकसान का आंकलन कर पाएंगे.
बच्चों को करना होगा जागरूक
इसके साथ ही सोशल मीडिया कंपनियों को बच्चों को होने वाले नुकसान को रोकने की दिशा में काम करना होगा, जिससे वह नशीले पदार्थों का सेवन, सुसाइड आदि के बारे न सोचें और इसके लिए जागरूक हो सकें.
तीसरा पक्ष करेगा कंपनियों की समीक्षा
बिल में यह बात भी कही गई है कि सोशल मीडिया कंपनियां नए नियमों का कितना बेहतर तरीके से पालन कर रही है, इसके लिए किसी तीसरे पक्ष को जिम्मेदारी देनी होगी, जो इन कंपनियों द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा करेगी.