जननायक कर्पूरी ठाकुर बौद्धिक रूप से प्रखर थे परंतु उनकी छवि कम पढ़े-लिखे नेता की तरह बनी. जैसे महाराष्ट्र में ज्योतिबा फुले ,डॉ. भीमराव अंबेडकर, तमिलनाडु में ई. वी. रामास्वामी पेरियार, केरल में नारायण गुरु ने दलित-पिछड़ो में जागृति लाई. इसी तरह की भूमिका बिहार में उनकी थी.
वे अच्छे अध्येता थे. वे अपने व्यस्त राजनैतिक जीवन में पढ़ने के लिए समय निकाल लेते थे. यह समय होता था ट्रेन में यात्रा का. ट्रेन यात्रा में उनके साथ पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का बंडल रहता था. वे पुस्तकें और पत्रिकाएँ खरीदते थे. यह बात अलग है कि उन्होंने अपने ज्ञान का प्रदर्शन नहीं किया. वे जानबूझ कर सोझबक बने रहते थे.

उनकी लिखावट बड़ी सुंदर थी. यह तय है कि अच्छी लिखावट किसी को एक दिन के प्रयास से नहीं आती है. उसके लिए लंबे समय तक निरंतर अभ्यास करना पड़ता है. उन दिनों विद्यालयों में सुलेख लिखने का प्रचलन था. तय है कि कर्पूरी जी ने इसके लिए लंबी साधना की होगी.
उमकी हस्तलिखित अक्षरों का नमूना बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद की पत्रिका ‘परिषद पत्रिका’ के (अक्टूबर -दिसंबर 2000) आवरण पृष्ठ पर देखा जा सकता है-
सिंचित कर साहित्य को , सरस सुधा से नित्य – ।
तुम सुधांशु जुग – जुग जियो, हिंदी हो कृतकृत्य ।।
उनकी ये काव्य पंक्तियाँ उन्हीं के अक्षर में छपी हैं.
आज बहुत कम लोग जानते होंगे कि वे एक कवि भी थे. उनका एक गीत लोकप्रिय था –
हम सोये वतन को जगाने चले हैं ,
हम मुर्दा दिलों को जिलाने चले हैं।
गरीबों को रोटी न देती हुकूमत ,
जालिमों से लोहा बजाने चले हैं।
हमें और ज्यादा न छेड़ो तू जालिम ,
मिटा देंगे जुल्मों के सारे नजारे।
या मिटने को खुद हम दीवाने चले हैं ,
हम सोये वतन को जगाने चले हैं। “
इस गीत को वे अपनी सभाओं में जाते थे. इससे लोगों में अन्याय के खिलाफ लड़ने का उत्साह पैदा होता था. ऐसी अन्य रचनाएँ संग्रह के अभाव में नष्ट हो गईं.
वे एक सफल वक्ता थे. वे अपने भाषण से लोगों को बांध लेते थे. वे शांत और गम्भीर स्वर में बोलते थे. उनके भाषण में बड़बोलापन नहीं रहता था. उनकी बात लोगों के दिल को छू लेती थी.

वे घोषित रूप से नास्तिक थे. आस्तिक होना आसान है. नास्तिक होने के लिए वैचारिक रूप से मजबूत होना पड़ता है. सार्वजनिक जीवन में नास्तिक होने के लिए बड़े साहस की जरूरत पड़ती है.
बिहार विधानसभा से उनपर चार पुस्तकें छपी हैं. उनके भाषणों का संग्रह कर्पूरी ठाकुर का संसदीय जीवन के नाम से प्रकाशित है. तीसरी पुस्तक सदस्य के रूप में पूछे गए प्रश्नों तथा सरकार के द्वारा दिए गए उत्तरों का संग्रह है. चौथी पुस्तक मंत्री के रूप में विधानसभा में दिए गए उत्तरों का संग्रह है. इन पुस्तकों से उनके वैचारिक ऊँचाई का पता चलता है.
- ये लेखक के निजी विचार है. लेखक की हाल ही में जगदेव प्रसाद की जीवनी प्रकाशित हुई है.