शुक्रवार को एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जाती प्रथा पर सवाल उठाते हुए पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा, देश में दो प्रकार के हिंदू हैं- एक वह जो मंदिर जा सकते हैं और दूसरे वह जो नहीं जा सकते. राजेंद्र भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में 21वीं सदी मे भी जाती आधारित भेदभाव पर दुख व्यक्त करते हुए मीरा कुमार ने कहा कि 21वीं सदी का भारत जाति के मामले में नहीं बदला है. पुजारी ने अक्सर मेरा गोत्र पूछा है और मैंने उनसे कहा है कि मेरी परवरिश वहां हुई है जहां जाति को नहीं माना जाता है. मीरा कुमार खुद दलित समुदाय से आती हैं.
दलित समुदाय से आने वाली और पूर्व राजनयिक मीरा कुमार ने कर्यक्रम मे आगे कहा कि हम 21वीं सदी में रहते हैं, हमारे पास चमचमाती सड़कें हैं, लेकिन बहुत से लोग जो उन पर चलते हैं वह आज भी जाति व्यवस्था से प्रभावित हैं. हमारा मस्तिष्क कब चमकेगा? हम कब अपने जाति आधारित मानसिकता का त्याग करेंगे… मैं आपसे कहती हूं कि दो प्रकार के हिंदू हैं, एक वे जो मंदिर में जा सकते हैं, दूसरे मेरे जैसे जो नहीं जा सकते.”
राजेद्र भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश भी मौजूद थे. उन्होंने अपनी नई किताब ‘द लाइट ऑफ एशिया: द पोएम दैट डिफाइंड बुद्धा’ पर एक व्याख्यान दिया. रमेश ने कहा कि यह किताब लिखने का एक कारण यह भी था कि मैं अयोध्या के संदर्भ में दोनों धर्मों के बीच संघर्ष के समाधान को समझना चाहता था. रमेश ने कहा कि बहुत से आंबेडकरवादी बौद्ध जो धर्मगुरु नहीं बल्कि कार्यकर्ता हैं, कहते रहे हैं कि अगर रामजन्मभूमि मामले में सौ प्रतिशत नियंत्रण हिन्दुओं को दिया जा सकता है तो भगवान बुद्ध की कर्मभूमि का सौ प्रतिशत नियंत्रण बौद्धों को क्यों नहीं दिया जा सकता.