इनसे सीखिए: बक्सर जिले का यह गांव 200 सालों से बूढ़े बरगद का कर रहा है संरक्षण

बक्सर। रविशंकर उपाध्याय 

बक्सर जिले के डुमरांव में एक गांव है़: कचइनिया। यह गांव 200 सालों से एक बरगद का संरक्षण कर रहा है। गांव के लोग इसे बूढ़ा बरगद के नाम से पुकारते हैं। कोरानसराय पंचायत के इस गांव में बिनोवा वन अवस्थित है, जिसके परिसर में यह बरगद का वृक्ष तनकर खड़ा हुआ है। इस वृक्ष और इसके तनाओं से निकले बरोह का गांव के लोगों ने इस प्रकार संरक्षण किया है कि मुख्य बरगद के इर्द-गिर्द एक दर्जन पेड़ बनकर वे इस बरगद को सहारा दे रहे हैं। बरगद का पेड़ अपने आप में काफी अनूठा और विशालकाय है, जिसे देखने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं। वृत्ताकार आकृति में यह बूढ़ा बरगद अपना विस्तार ले रहा है। इसकी तनाओं से निकलनेवाले बरोह को स्थानीय युवाओं की टोली ने मिट्टी पानी व खाद देकर सींचा। सहारा दिया। उसकी देखभाल की। नतीजा है कि सभी बरोह ने पेड़ का रूप ले लिया है। अब यह बूढ़ा बरगद इस गांव की पहचान है। इसकी आयु का आकलन तो नहीं किया जा सकता लेकिन गांव के सबसे बुजुर्ग लोग भी कहते हैं यह 200 साल से ज्यादा पुराना है।

भूदान आंदोलन का साक्षी रहा है यह बरगद

इस पेड़ की तरह यह गांव भी ऐतिहासिक है। भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे ने इसी बरगद की छांव में सैंकड़ों एकड़ जमीन भूमिहीनों के बीच बांटी थी। 48 एकड़ भूमि आज भी महादेव मंदिर के नाम से बची हुई है। इसकी छाया में कभी विनोबा जी ने शरण ली थी। यहां जप तप ध्यान भी किया था। 1954 में विनोबा भावे ने इसी प्राचीन बरगद के पेड़ के नीचे अपना समय गुजारा। वे कंचनेश्वर मंदिर के प्रांगण में कई वर्षों तक प्रवासी बनकर रहे। इसी दौरान उन्होंने भूदान में इस दौरान इन्होंने भूदान में डुमरांव राज परिवार से कुल 42.91 एकड़ भूमि अर्जित की और उसे वन में तब्दील कर दिया। इसके बाद में कचइनिया मठ के महंत ने भी 56.12 एकड़ भूमि भूदान में दी। भूदान तथा भू-हदबंदी अधिनियम के तहत कुल 122 भूमिहीन परिवारों के बीच विनोबा भावे ने जमीन को वितरित कर दिया।

पेड़-पौधों के कारण रहती है निरोगी काया 

स्थानीय आशुतोष पांडे कहते हैं कि इस विशाल भू-भाग पर शीशम, सागवान, अशोक, पीपल और बरगद जैसे हजारों वृक्ष उन्होंने लगवाया था। इन्हीं पुराने वृक्षों से गांव की आबोहवा शुद्ध है और यहां रहने वाले लोग निरोग रहते हैं। अब भी भगवान शंकर के नाम से यहां पांच बीघा जमीन है। जिसे स्थानीय युवा विकसित करने में जुटे हैं। इस बिनोवा वन का भ्रमण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी समेत कई राजनेता और अधिकारियों ने किया है। युवा शिवानंद पांडेय कहते हैं कि यहां भ्रमण के दौरान मुख्यमंत्री और तत्कालीन उप- मुख्यमंत्री की ओर से वन को पर्यटन स्थल का दर्जा देने की बात कही गई थी। स्थानीय लोग विनोबा वन के बिहार पर्यटन सर्किट में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं। आशुतोष कुमार पांडेय गंगे, पूर्णानंद मिश्रा, संजय सिंह, धीरज पांडेय, उपेंद्र पाठक, नवनीत, सुमित गुप्ता, रवि प्रकाश श्रीवास्तव दुखी साधु, शंकर ये चंद नाम हैं, जिन लोगों की सतत श्रम का नतीजा है कि बिनोवा वन का सौंदर्य लगातार निखरता जा रहा है। यहां आनेवाले किसी भी अतिथि की मेहमाननबाजी में ये युवा साथी कोई कसर नहीं छोड़ते। हिरण, चितल, काला हिरण यहां खुले में विचरते हैं। इस इलाके को सुरम्य बनाने में इन वन्य प्राणियों का भी अहम योगदान रहा है।
धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण स्थल रहा है बिनोवा वन
सैकड़ों एकड़ में फैला जंगल। जंगल के बीचो-बीच स्थित उत्तर गुप्त कालीन शिवलिंग। प्राचीन मूर्तियों का भग्नावशेष और मंदिर के पास स्थित विशाल बरगद का पेड़। इस विनोबा वन में मनोकामना लिंग स्थित है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने के बाद श्रद्धालुओं की सारी इच्छाएं 12 दिन और 12 महीने में पूरी हो जाती है। प्राचीन मान्यता है कि विनोबा वन के शिवलिंग पर बाणासुर नाम का राक्षस जल चढ़ाता था। वह बक्सर गंगा घाट से जल लेकर तीन कदमों में तीन शिवलिंग पर जल चढ़ाता था। पहले जल ब्रह्मपुर के शिवलिंग पर, दूसरा जल विनोबा वन में स्थित शिवलिंग पर और तीसरा जल रोहतास जिले के गुप्ता धाम पहाड़ी पर चढ़ाता था। धीरे-धीरे मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ती गई। हर वर्ष यहां शिव पार्वती के विवाह का आयोजन होता है। जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं।

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