2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जल-जीवन-हरियाली के नाम पर हाय-तौबा मचा कर वोट मांगा था. इसे मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना बताई गई. परंतु अब ये योजना अनियमितता, घोटालेबाजी और भ्रष्टाचार का पर्याय बनती हुई प्रतीत हो रही है. सरकार इस योजना से संबंधित किसी भी सवाल का संतोषजनक जवाब देने के बजाय गोल-मटोल बातें कर रही है.
मुजफ्फरपुर में जल-जीवन-हरियाली अंतर्गत पैसों को 16 में से सिर्फ 7 प्रखंडों में ही खर्च करने का निर्णय क्यों लिया और हमारे काबिल अधिकारियों ने इन 7 प्रखंडों का चुनाव कैसे किया? बाकी के प्रखंडों को दरकिनार क्यों किया गया?
इसी विषय पर हमारी टीम ने खोजबीन करते हुए सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सरकार से कुछ सवालों के जवाब मांगे. अधिकतर सवालों के जवाब मिले ही नहीं. सरकारी कार्यालयों ने ये कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि ये उनके क्षेत्राधिकार में नहीं आता. जिन चंद सवालों के जवाब प्राप्त हुए हैं उनसे जन-जीवन-हरियाली योजना में भयंकर गड़बड़ी और अनियमितता का खुलासा हुआ है.
सूचना के अधिकार के तहत हमने मुजफ्फरपुर जिला कार्यालय से सवाल पूछा, सवाल था “जल-जीवन हरियाली अभियान के अंतर्गत आपके जिला को अबतक आवंटित और खर्च की गई कुल राशि का विवरण उपलब्ध कराया जाए”.

जवाब जिले के कृषि पदाधिकारी के कार्यालय से आया. जवाब में लिखा था कि उन्हें इस अभियान के तहत कुल 44 लाख 77 हजार 700 रुपए की राशि प्राप्त हुई है. ये पैसे कहाँ खर्च हुए उसकी एक कॉपी भी साथ में नथी कर के भेजी गई.
उन्होंने 44 लाख 77 हजार 700 रुपए की राशि से कुल 21 तालाब और 1 फार्म पॉण्ड के निर्माण का ब्योरा दिया. ये 22 तालाब मुजफ्फरपुर के 16 प्रखंडों में से सिर्फ 7 प्रखण्ड में ही बनवाए गए और सबसे अधिक पैसे खर्च हुए हैं मुशहरी प्रखण्ड में. इसके पीछे के कारण को समझने के लिए जब हमने मुजफ्फरपुर जिला कृषि पदाधिकारी के कार्यालय के सरकारी नंबर को डायल किया तो कोरोना के कॉलर ट्यून के अलावा कुछ और सुनने को नहीं मिला.
सो गए है जन-प्रतिनिधि
सरकारी अधिकारी की तो छोड़िए मुजफ्फरपुर के जनप्रतिनिधि भी सोये हुए प्रतीत हो रहे हैं. मीनापुर से राजद के विधायक हैं मुन्ना यादव. हमने उनसे जब इस विषय पर बात करने का प्रयास किया तो उनका जवाब था कि उनके पास समय नहीं है.
फिर हमारी टीम ने कुछ स्थानीय लोगों से बात करने का निर्णय लिया जिसके बाद एक नाम निकल कर आया. वो नाम था दिनेश सिंह का. दिनेश सिंह वैशाली के सांसद वीणा देवी के पति है और खुद एमएलसी हैं. जिले में उनका दबदबा है.
जिस प्रकार नीतीश कुमार के दबदबे से विकास के गंगा की धारा को उनके गृह जिले की ओर मोड़ दिया जाता है, उसी प्रकार मुजफ्फरपुर जिले में एमएलसी साहब के दबदबे से सारा विकास बजट उनके क्षेत्र में धर दिया जाता है. उसके बाद ठेकेदारी और कमीशन का जो खेल होता है उससे आप सब वाकिफ हैं.
बहरहाल ये जनता की अपनी-अपनी मान्यताएं है और जनता सब जानती है.
अब बात करते हैं कुछ आंकड़ों की –
मुजफ्फरपुर के जिला कृषि पदाधिकारी ने कुल राशि में से 10 लाख 54 हजार 500 की राशि से मुशहरी प्रखण्ड में 5 तालाबों का निर्माण कराया. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मुशहरी प्रखण्ड के नरौली कल्याण पंचायत के किसान दिलीप साह, रौहुआ राजाराम पंचायत के मधुसूदन प्रसाद, मुशहरी पंचायत के किसान रंजीत कुमार, मनिका विशुनपुर चाँद पंचायत के किसान विनोद प्रसाद सिंह और मनिका हरिकेश पंचायत के किसान दिलीप कुमार में से प्रत्येक को एक-एक तालाब के निर्माण के लिए 2 लाख 10 हजार 900 रुपए की राशि दी गई.
सकरा और साहेबगंज में एक-एक तालाब का निर्माण क्रमशः 2 लाख 10 हजार 900 रुपए और 2 लाख 13 हजार 400 रुपए के खर्च से कराया गया.
औराई और कटरा में से प्रत्येक में चार-चार तालाब के निर्माण के लिए क्रमशः 8 लाख 53 हजार 600 रुपए खर्च किए गए. वहीं सरैया में 3 तालाबों के निर्माण के लिए कुल 5 लाख 30 हजार 500 रुपए खर्च किए गए.


आप देख पा रहें हैं कि जिला कृषि पदाधिकारी ने कुल 22 तालाबों का निर्माण जिले के 16 प्रखंडों में से सिर्फ 7 प्रखंडों में ही करवा दिया. हो सकता है इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण हो, संभवतः ठेकेदारी का खेल या किसी राजनेता का दवाब भी हो सकता है.
लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि सरकार के पास इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं है और जिम्मेदार अधिकारी हों या जन-प्रतिनिधि सभी सोये हुए हैं.