रविशंकर उपाध्याय। पटना
वह सन 1770 का साल था। आज के बिहार और तब के संयुक्त बंगाल सूबे के पूर्णिया जिले का प्रथम सुपरवाइजर (कलक्टर) बनाकर जेरार्ड गुस्तावस डुकारेल को अंग्रेजी सरकार द्वारा भेजा गया। 14 फरवरी, 1770 ई. को डुकारेल ने पूर्णिया के प्रथम कलक्टर के रूप में प्रभार लिया। उस समय उसकी उम्र थी महज 25 वर्ष।
डुकारेल था तो उसी ईस्ट इंडिया कम्पनी का मुलाजिम लेकिन व्यक्तिगत रूप से वह एक संवेदनशील इंसान था। उस समय भारतीय समाज कई तरह की कुप्रथाओं का शिकार था। इन कुप्रथाओं में से एक थी सती प्रथा। उस समय तक सती प्रथा पर रोक सम्बन्धी कोई कानून नहीं बना था।
डुकारेल ने एक वृद्ध जमींदार की नवयौवना विधवा को सती होने से बचाया और उसे अपने घर में आश्रय दिया। इसी बीच दोनों के बीच प्यार पनपता है और दोनों विवाह के बंधन में बँध जाते हैं। विवाह को लेकर उसने अपने परिवार से इजाजत नहीं ली थी।
डुकारेल की पूर्णिया उपन्यास में लेखक डॉ लक्ष्मीकांत सिंह लिखते हैं कि डुकारेल ने अपनी मां को इसे लेकर एक चिट्ठी लिखी। चिट्ठी में वह कहते हैं कि मां मैंने शादी बहुत ही सुंदर, सुशील और संस्कारी लड़की से की है। वह इतनी सुंदर है कि परी सरीखी है।
22 जनवरी 1771 ई. को लिखी चिट्ठी कुछ इस तरह है:-
मेरी प्यारी माँ,
आशा है, तुम अब खुश और सुखी होगी। मैं भी ठीक-ठाक और खुश हूँ। मुझे क्षमा करना माँ, बगैर तुम्हारे इजाजत के मैंने शादी कर ली है। तुम्हारी दुःख को समझ सकता हूँ माँ, पर समय के हाथों मजबूर था। हिन्दुस्तान की मिट्टी में तेरा बड़ा बेटा, यानी मेरा प्रिय भाई दफन है। मैं उसे नहीं ला सकता, लेकिन यहाँ की मिट्टी तो लेकर आ सकता हूँ।
तुम तो जानती हो माँ, कम्पनी के अनुबंध को पूरा किए बिना इंगलैंड नहीं आ सकता, अन्यथा सेवा लाभ से वंचित होना पड़ेगा। फिर हमारी भावी पीढ़ी का भी सवाल था, जो मेरी शादी के अभाव में शून्य हो जाता। उस वक्त तुम्हे आज से ज्यादा दुःख होता । माँ, इस धृष्टता के लिए मुझे माफ कर देना। मैं हूँ तेरा ही बेटा ना। एक बात बता दूँ माँ, तेरे लिए जो बहू चुना हूँ वह यहां की शाही खानदान की राजकुमारी है। उसकी सुंदरता के बारे में क्या बताऊँ माँ, बचपन में जो परियों की रानी, वाली कहानी सुनाती थी ना, बस समझो वही परी है। पढ़ी-लिखी समझदार एवं हिन्दुस्तानी संस्कृति की अद्वितीय प्रतिमान है।
अभी ना सही, लेकिन जब अपनी बहू को देखोगी ना माँ, तो जरूर अपने बेटे को माफ कर दोगी। तब तुझे अपने आप पर गर्व होगा कि तुम्हारा बेटा हिन्दुस्तान से एक नायाब हीरा लाया है। ठीक है माँ, अपना ख्याल रखना और मुझे माफ कर देना
तुम्हारा प्यारा
जेरार्ड गुस्टावस डुकारेल
डुकारेल ने इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से निभाया। उसे अंग्रेजी पढ़ाई। इसे लेकर पूर्णिया के मदरसे और गुरुकुल का लगातार दौरा किया। अंग्रेजी शिक्षा की औपचारिक शुरूआत की और बाद में जब वह इंग्लैंड लौटा, तो वह अपनी पत्नी और बच्चों को भी साथ ले गया।
ब्रिटिश सत्ता का प्रतिनिधि होने के बावजूद वह आम जनता में काफी लोकप्रिय हुआ। यह अकारण नहीं है कि आज ढाई सौ वर्ष के बाद भी पूर्णिया जिला का डकरैल या डोकरैल गाँव उसकी स्मृति को जीवित रखे हुए है।