सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नीति आयोग के रिपोर्ट पर मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि नीति आयोग ने बिहार को पिछड़ा राज्य बताया है तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए. बिहार को विकसित किए बिना देश कैसे ट्रांसफॉर्म होगा? उन्होंने बताया कि कैसे बिहार पिछले 15 सालों से विकास कर रहा है मगर प्रति व्यक्ति आय को राष्ट्रीय स्तर तक लाने के लिए विशेष राज्य का दर्जा मिलना जरूरी है.
आपको बता दें, बीते दिनों नीति आयोग ने देश का पहला बहुआयामी गरीबी सूचकांक जारी किया है. इस सूचकांक के अनुसार बिहार को देश का सबसे गरीब राज्य बताया गया है. बिहार राज्य की 51.91% आबादी गरीब है. इसी संबंध में मुख्यमंत्री से मीडियाकर्मियों द्वारा सवाल किया गया. “जनता के दरबार में मुख्यमंत्री” कार्यक्रम के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आपदा को अवसर में बदलने जैसा जवाब दिया. नीतीश कुमार ने बिहार के पिछड़े होने का कारण केंद्र द्वारा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने को बताया. उन्होंने कहा, जो राज्य पिछड़ा दिख रहा है, उसके उत्थान के लिए काम करना होगा. इसलिए हमने विशेष राज्य के दर्जे की मांग की है.
विशेष राज्य के संबंध में केंद्र का जवाब
जबकि पूर्व में ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के संबंध में केंद्र सरकार ने जवाब देते हुए कहा था कि 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के आधार पर अब सामान्य वर्ग और विशेष वर्ग के राज्य में कोई अंतर नहीं रह गया है क्योंकि राज्यों को मिलने वाले कर के बंटवारे में अब कोई ख़ास फर्क नहीं बचा है. बिहार को केंद्र के राजस्व में अब 32 की बजाय 42 फीसद हिस्सा मिल रहा है. बावजूद इसके भारत की तुलना में बिहार की प्रति व्यक्ति आय लगभग एक तिहाई है.
गौरबतल है कि नीतीश कुमार द्वारा बीते एक दशक से, सवाल के अधिकांश मौकों पर, विशेष राज्य के दर्जे की मांग की जाती रही है. जब-जब बिहार के पिछड़ेपन पर सवाल उठाया जाता है तो विशेष राज्य के दर्जे का ना होने को इसका जिम्मेवार बता दिया जाता है. वहीं बात अगर नीति आयोग या अन्य किसी संस्था के रिपोर्ट की करें तो बिहार सरकार के मंत्री अक्सर रिपोर्ट को झूठा और फर्जी बताते पाए गए हैं.
बिहार का इतिहास और भविष्य
जहाँ एक तरफ प्राचीन काल से ही बिहार इतिहास के पन्नों में एक गौरवशाली और संपन्न राज्य दिखाई देता रहा है. लोकतंत्र, शिक्षा, राजनीति, धर्म एवं ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में देश और दुनिया में अपनी पहचान की रौशनी फैला चुका है, उसी बिहार का वर्तमान स्वरूप अब लोगों के मन में एक ऐसी तस्वीर बनाती है, जिसमें ना तो कोई जगमगाहट है ना ही कोई उल्लास. दिखता है तो बस पिछड़ापन और भविष्य का अंधेरा!
आंकड़ों की माने तो 2019-2020 में देश का प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 34 हजार 432 रुपया है जबकि बिहार का 50 हजार 735 रुपया. मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके बावजूद हमलोग अपने बूते पर बिहार का लगातार विकास कर रहे हैं. मुख्यमंत्री के अनुसार बीते 15 साल मे बिहार का विकास दर देश में सबसे ज्यादा रहा है. मगर विकास में और आगे बढ़ने तथा राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय के बराबर पहुँचने के लिए केंद्र को बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग को पूरा किया जाना चाहिए.
विशेष राज्य बस एक जुमला
विडंबना है कि हर मौके पर मुख्यमंत्री द्वारा विशेष राज्य के मुद्दे पर अपना पल्ला झाड़ लिया जाता है. जबकि बिहार के पिछड़े होने के बावजूद बिहार में विकास की असीम संभावनाएं मौजूद हैं, जिनको उचित प्रबंधन द्वारा दूर किया जा सकता है. मगर लाख दावों के बावजूद कहने को तो सरकार प्रयासरत है पर ज़मीनी हकीकत इससे मेल नहीं खाती.
पिछले कई दशकों से राज्य में न तो कृषि का अपेक्षित विकास हुआ और न उद्योग का. ढांचागत सुविधाएं और सेवाएं बुरी हालत में हैं. साथ ही अफ़सरशाही में क्षमता निर्माण करने और पंचायत स्तर के नेताओं के कामकाज सुधारने के मामले में भी उदासीनता बरती जा रही है. फलतः बिहार आर्थिक पिछड़ेपन का शिकार होता रहा और अंततः आज बिहार अपने आर्थिक पिछड़ेपन के वजह से ही जाना जाने लगा. राजनीतिक पार्टियां बस अपने फायदे के मुद्दों को उछाल कर सत्ता की रोटी सेंक लेती है. वास्तविक बिहार की किसी को परवाह नहीं. ऐसे में सवालों के मौके पर विशेष राज्य के दर्जे को बिहार के पिछड़ेपन के आगे खड़ा कर दिया जाता है.