पहला पन्ना: सब नहीं दिख पाता. सबकुछ तो बिल्कुल ही नहीं. मुझे जो दिख पाता है क्या वो सबको दिख पाता है. ऐसे ही कुछ सवाल दिख पाते हैं आजकल. जब देश दिखता है तब पाँच राज्यों में चुनाव दिखता है. दुनिया की तरफ देखने पर रूस-यूक्रेन विवाद दिखता है.
देश के पाँच राज्यों में चुनावी मौसम है. ऐसे में हिजाब विवाद दिखता है. बजरंग दल कार्यकर्ता की हत्या दिखती है. मंदिर-मस्जिद भी दिखते हैं. इन चुनावों के बीच वही दिखता है जो चुनावों में दिखनी चाहिए. ऐसे में सवाल यह है कि क्या रूस-यूक्रेन विवाद तीसरे विश्व युद्ध में बदल जाएगा. और सवाल यह भी है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित पाँच राज्यों में किसकी सरकार बनेगी.
प्रधानमंत्री मोदी भी दिखते हैं. राहुल गांधी भी दिखते हैं. तब ऐसी क्या चीज है जो नहीं दिखती. वह क्या उदासी है. और इश्क दिखता है क्या? काम दिखता है. खबरें दिखती हैं. लोग दिखते हैं. मगर ऐसा कुछ है जो लगता है नहीं दिखता.
फूलों का खिलना नहीं दिखता. चिड़ियों का चहचहाना नहीं दिखता. बच्चों का खेलना नहीं दिखता. भाषण देते मोदी जी जरूर दिख जाते हैं. नुक्कड़ पर गपशप नहीं दिखता. काम देते बॉस दिख जाते हैं. मोटा-मोटी बोलें तो जो नहीं दिखता है वह किसी को तो दिखता होगा. जो दूसरे को दिख रहा है वह मुझे क्यों नहीं दिखता. सवाल दिखने का है. जो दिख रहा है वह प्रभावी है. सत्य निकट ही कहीं पाँव पसारे बैठा है.