विश्व भर में एक साल में पैदा होने वाले लगभग 2.5 करोड़ बच्चों का पाँचवा भाग भारत में जन्म लेता है. इन शिशुओं में हर मिनट एक न एक शिशु की मृत्यु होती है. भारत का शिशु मृत्यु दर आँकड़ा कभी कम तो कभी ज्यादा होता है.
इस साल के SRS के आँकड़े के मुताबिक 10 सालों में भारत की शिशु मृत्यु दर में भारी गिरावट आई है. दर 50 से 30 तक चला गया है. हर बार की तरह इस बार भी केरल में शिशु मृत्यु दर सबसे कम है. परंतु कई राज्यों में सुधार की गति बहुत धीमी है. SRS की रिपोर्ट के अनुसार पिछले पाँच वर्षों में, यानि कि 2014 से 2019 तक में शिशु मृत्यु दर में पतन धीरे हो रही है.
जहाँ केरल की सबसे कम मृत्यु पर अमेरिका के बराबर है वहीं मध्य प्रदेश की मृत्यु दर येमेन और सुडान से भी ज्यादा है जो चिंताजनक है. बिहार ने भी इस बार तेज़ सुधार दिखाई है.
भारत की शिशु मृत्यु दर में 2003 से 2019 तक में काफी बेहतरीन सुधार आया था. लेकिन फिर भी वह 30 पर होते हुए बांग्लादेश और नेपाल से ज्यादा था जो कि 26 पर थे. मगर भारत पाकिस्तान से बेहतर था जो कि 56 पर था. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के हर राज्य के मृत्यु दर में कुछ सुधार हुई थी.
बड़े राज्यों की शिशु मृत्यु दर में तेजी से सुधार लाने वाले राज्य हैं बिहार, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल. केरल, जो कि 2011 से 2015 तक 12 पर रुका हुआ था, पिछले पांच सालों में सीधा 6 पर आ गया.
जिन राज्यों में सबसे धीरे शिशु मृत्यु दर में सुधार हुआ है उनमें मध्य प्रदेश, पंजाब, यूपी और छत्तीसगढ़ हैं. इनकी गति इतनी धीमी है कि जहां ये 2014 से 2019 में दो अंक की सुधारता पर थे अब एक अंक की सुधारता पर आ गए हैं.
केरल के बाद दिल्ली, तमिल नाडू और महाराष्ट्र ने भी सुधार में तेजी दिखाई हैं. भारत की शिशु मृत्यु दर 2019 के लिए 1971 के दर से लगभग एक चौथाई हो गई है जो कि 129 थी.
सुधार इसलिए हुई है क्योंकि जहाँ पहले नवजात शिशुओं की मौत प्रसव के दौरान, संक्रमण, दम घुटने और जन्मजात विकृतियों के कारण होती थी उस दर में लगभग 10 लाख से ज्यादा की कमी आ गई है. महिलाओं को प्रसव स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ अधिक से अधिक देने की कोशिश की जा रही है.
शिशु मृत्यु दर में सुधार भले ही है मगर वैसी भी नहीं है जैसी की होनी चाहिए. अभी भी अनेक वंचित समूहों तक आवश्यक सुविधाएँ पहुँचाने की ओर ध्यान नहीं दिया जाता. बालिकाओं के स्वास्थ्य पर भी विशेष नज़र नहीं रखी जाती. आज भी कई ऐसे गाँव, जिले या छोटे शहर होंगे जहाँ बाल विवाह कराया जाता है और नवजात बालिकाओं पर बच्चा पैदा करने के लिए ज्यादती की जाती है. यह जिम्मेदारी उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जोखिमपूर्ण होती है और इसके कारण न जाने कितने शिशुओं की मौत और उनकी माताओं की मौत भी हो जाती है.
शिशु मृत्यु दर में सही तरीके से सुधार लाने के लिए इस बारे में जागरूकता फैलानी होगी और इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सभी राज्यों में बराबर की सुविधाएं शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए प्रदान करनी होगी. एक स्वस्थ शिशु दर हम तब ही प्राप्त कर सकते हैं.