बेरोजगारों को सरकारी नौकरी ही क्यों चाहिए?

संसद में देश का आम बजट पेश कर दिया गया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बजट को पेश करते हुए उम्मीद जताया है कि अगले वित्त वर्ष में आर्थिक ग्रोथ 9.2 प्रतिशत रहेगी. बजट पर बातचीत कभी और कर लेंगे.

कई रोज से हम बेरोजगारी के मुद्दे पर चर्चा कर रहे है. पहले आरआरबी एनटीपीसी और फिर इंजीनियरों के बेरोजगारी का मुद्दा सामने आया है. ऐसे समय में देश के एक बड़े पत्रकार ने ये भी कहा है कि विद्यार्थी रेलवे के सामने कटोरी लेकर नौकरी की भीख क्यों मांगते है? जानेंगे क्यों मांगते है उस से पहले बेरोजगारी का आलम जान लीजिए.

हाल ही में बेरोजगारी का डेटा जारी करने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) ने एक आँकड़ा पेश किया था जिसके मुताबिक 2021 के सितंबर-दिसंबर के दौरान देश में बेरोजगारों की कुल संख्या 3.18 करोड़ रही है. इन 3 करोड़ 18 लाख बेरोजगारों में 95 प्रतिशत यानि कि 3.03, तकरीबन 3 करोड़ से ज्यादा बेरोजगारों की उम्र 29 साल से कम है. ये वही उम्र है जब इंसान नौकरी के लिए परिवार और समाज के दवाब में मानसिक रूप से पीड़ित होता है.

बेरोजगारों की ये संख्या 2020 में देश भर में लगे लॉकडाउन से भी ज्यादा है. दैनिक भास्कर की अनालिसिस के अनुसार तब देश में 2 करोड़ 93 लाख बेरोजगार थे.

इतना ही नहीं, इसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 1 करोड़ 24 लाख बेरोजगार ऐसे भी है जो अब थक कर काम खोजना ही छोड़ चुके है. अब अगर इस संख्या को भी मिला दिया जाए तो, बेरोजगारों की संख्या हो जाती है 4 करोड़ 27 लाख.

इस आँकड़े को पेश करने वाली संस्था CMIE बेरोजगारी का डेटा जारी करने वाली इकलौती संस्था है. इसके डेटा का इस्तेमाल रिजर्व बैंक समेत केंद्र सरकार के विभाग भी करते हैं.

हाँ, तो जहां 4 करोड़ 27 लाख बेरोजगार हो वहाँ ये सवाल कितना जायज है कि लोगों को सरकारी नौकरी ही क्यों चाहिए? क्योंकि जब बेरोजगारों की संख्या इतनी ज्यादा हो जाती है तो जाहीर है कि सरकारी ही नहीं प्राइवेट सेक्टरस् में भी नौकरियां नहीं है.

ये मैं नहीं कह रहा ये विकास कह रहे है जो इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के विद्यार्थी है.. सुनिए उनकी बात..

वैसे तो यूपीएससी सही समय पर परीक्षा कराने और रिजल्ट जारी करने के लिए जानी जाती है लेकिन रेलवे में नौकरी के लिए इंजीनियरों के लिए कराई जाने वाली IRMS की परीक्षा दो सालों से नहीं हुई है. विकास को डर है कि कहीं उनके साथ भी वही न हो जो रेलवे ने एनटीपीसी और ग्रुप डी के विद्यार्थियों के साथ किया.

इतना ही नहीं विकास ने ये भी कहा कि सरकारी तो छोड़िए प्राइवेट में भी मौके नहीं है क्योंकि जिस कॉलेज से वो इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे है वो बिहार का एक छोटा-सा कॉलेज है जबकि आईआईटी और एनआईआईटी के विद्यार्थी भी बेरोजगार बैठे है और कभी-कभी तो रेलवे की ग्रुप डी की परीक्षा का फॉर्म भी भर देते है.

अब बात करेंगे की आखिर आईआईटी और एनआईआईटी से पढे इंजीनियर भी क्यों एक सरकारी नौकरी के लिए रेलवे की ग्रुप डी और पीएचडी धारक चपरासी तक का फॉर्म भरते है, लेकिन उसके पहले ये देखिए……

Courtesy – Zee News

अब आप सोचिए कि ये किसकी भाषा है. मैं इस बात का विश्लेषण नहीं कर सकता लेकिन आप ये बताइए कि क्या ये आपकी भाषा है? क्या ये किसी मिडल क्लास फैमिली की आवाज है…

अब इनको तो सरकारी नौकरी मिल गई है लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि ये इस बात को भी बता रहे हैं कि लोगों को सरकारी नौकरी क्यों चाहिए. और गौर कीजिए, ये इन्होंने ही कहा है कि सरकारी नौकरी में काम के घंटे तय होते हैं यानी जीतना पैसा उतना काम. यानी की आपका दमन नहीं होता. आपको कोई प्रताड़ित नहीं करता.

सरकारी नौकरी में जॉब सिक्योरिटी है, तनख्वाह और अन्य भत्ते भी अच्छे हैं, घर खरीदने के लिए आसानी से लोन मिलता है, बीमा और पेंशन भी मिलती है और निश्चित समय पर सैलरी भी बढ़ती रहती है… ये सारी बातें यही महाशय बता रहे हैं.

एक युवा के तौर पर क्या आप इन सबकी उम्मीद नहीं रखते हैं. अगर रखते हैं तो सुधीर चौधरी आपको और हम सबको जो शब्द कहना चाहते है वो अंग्रेजी के सी अक्षर से शुरू होता है.

ये चाहते हैं कि आप और हम दिन रात किसी प्राइवेट नौकरी की गुलामी को इन्जॉय करें. सही समय पर घर जाने, सैलरी बढ़वाने और प्रमोशन के लिए बॉस के तलवे चाटने को ही अपना काम समझे.

आश्चर्य की बात ये है कि सरकार ने इनको इतना बड़ा स्टूडियो और करोड़ों की नौकरी दे रखी है इसके बावजूद भी ये कह रहें हैं कि वो प्राइवेट नौकरी करते है.

अब यहाँ इसी खबर में इन्होंने ये भी कहा कि लोग सरकारी नौकरी इसलिए करना चाहते है क्योंकि यहाँ खूब घुस की कमाई होती है और कामचोरी होती है. ये एक अहम सवाल है. सुधीर इन बातों से सीधा सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं. क्या प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार में घूसखोरी और कामचोरी चल रही है. अगर सुधीर ऐसा कह रहे है तो वो सीधे तौर पर सरकार को भ्रस्टाचार रोक पाने में विफल बता रहे है. वो कहना चाह रहे हैं कि प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार में कामचोरी और घूसखोरी खूब फल-फूल रही है. जैसा सुधीर कह रहे हैं अगर वैसे है तब तो उन्हें सरकार से इस्तीफा मांग लेना चाहिए. सरकार उनकी बात मानती भी है.

सरकारी नौकरी क्यों करनी है इसका मुख्य कारण है प्रताड़ना से बचना. प्राइवेट नौकरी में आपके साथ हर तरह से भेदभाव होता है. आपके आने-जाने के समय तक पर किसी और का पहरा होता है. और सोचिए कि अगर किसी खास जातिगत या धार्मिक मानसिकता का व्यक्ति कोई प्राइवेट कंपनी चल रहा हो या आपका सीनियर हो तो आपके साथ जातिगत या धार्मिक भेदभाव की कितनी अधिक संभावनाएं हैं.

अब ट्रोल ये भी कह सकते हैं कि अपना ही कंपनी खोल लो. लेकिन जो पटना के भिखन पहाड़ी के में किसी छोटे-से कमरे में रह कर बिना सरसों तेल का चोखा खा रहे है, जो पैदल ही चल रहे है क्योंकि उनके पास कॉलेज जाने के लिए ऑटो का किराया तक नहीं बचा है. मेरा सवाल है ऐसे गरीब और संसाधनहिन विद्यार्थियों के लिए कंपनी खोलने की चाभी किधर है?

अब आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी के आह्वान पर पकौड़े तलने की फैक्ट्री खोलिए या सुधीर चौधरी के आह्वान पर प्राइवेट नौकरी के रूप में चौकीदार बन जाइए….

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