30 सितंबर 2016 को पटना हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने शराबबंदी के विरोध में फैसला सुनाया था. जिसके बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी को तत्काल निरस्त करने से इंकार करते हुए पटना हाईकोर्ट के ऑर्डर पर रोक लगा दी थी. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट आगामी 7 जनवरी को सुनवाई करेगी.
नीतीश सरकार ने 5 अप्रैल 2016 से राज्य में शराब बेचने और पीने पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. जिसके बाद पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई. जिसकी सुनवाई के बाद पटना हाई कोर्ट ने शराबबंदी कानून के विरोध में फैसला सुनाया था. पटना हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद ये सवाल उठा कि क्या शराब पीना मौलिक अधिकार है? हालांकि इस संबंध में फैसला सुनाने वाले दोनों जजों के विचारों में मतभेद भी सामने आए थे.
नीतीश सरकार सख्त है शराबबंदी पर
सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर बेहद सख्त हैं. मुख्यमंत्री ने पूरी पुलिस व्यवस्था को शराब और शराब पीने वालों के पीछे लगा रखा है. हालांकि तमाम कार्रवाईयों के बावजूद भी सरकार शराब के अवैध कारोबार को रोक पाने में असफल रही है.
नीतीश सरकार कड़े कानून बनाने से लेकर शपथ दिलाने तक का काम कर चुकी है. इसके बाद भी बिहार में जहरीली शराब के सेवन लोगों की मौत के मामले लगातार आ रहे हैं.
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई दिनों से समाज सुधार अभियान पर निकले हुए हैं. इस अभियान में वह शराबबंदी को सफल बनाने के लिए लोगों को जागरुक कर रहे हैं. वहीं उन्हीं की सरकार में सहयोगी हम पार्टी के प्रमुख जीतनराम मांझी कई बार शराबबंदी को लेकर सवाल उठा चुके हैं.
पिछले दिनों में भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस कानून का ड्राफ्ट तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी रही है. जिस वजह से अदालतों में केस की बाढ़ आ गई है. एक साधारण जमानत के आवेदन को निपटाने में 1 वर्ष का समय लगता है. ऐसा प्रतीत होता है कि विधायिका समिति प्रणाली का उपयोग करने में सक्षम नहीं है. मुझे आशा है कि यह बदल जाएगा क्योंकि इस तरह की जांच से कानून की गुणवत्ता में सुधार होता है.
मुख्य न्यायधीश की बिहार में शराबबंदी पर इस तरह की टिप्पणी और उसके तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई के कई मायने निकाले जा रहे है. ऐसे में ये जानना वाकई दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट शराबबंदी कानून को निरस्त करती है या पटना हाई कोर्ट के निर्णय पर रोक जारी रखती है!