मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड
मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में 11 फरवरी 2020 को 40 से अधिक लड़कियों के साथ यौन एवं शारीरिक उत्पीड़न के आरोप में ब्रजेश ठाकुर समेत अन्य 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. ईडी ने ब्रजेश ठाकुर पर मनी लांड्रिंग का मामला चलाने के लिए भी चार्जशीट दाखिल किया है.
टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई ने वर्ष 2017-18 में बिहार के सभी बालिका गृहों का सोशल ऑडिट किया था. इसकी रिपोर्ट 15 मार्च 2018 को बिहार सरकार को सौंपी गई. इसके बाद बिहार की प्रशासनिक और न्यायिक संस्था से लेकर राजनीतिक संस्थाओं में भी भूचाल आ गया.
इतने सालों से मुजफ्फरपुर में स्वयंसेवी संस्था ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ द्वारा चलाए जा रहे बालिका गृह में लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न हो रहा था. इसमें एक सात साल की बच्ची भी शामिल थी. पीड़ित बच्चियों ने खुलासा किया कि उन्हें बाहर कई सफेदपोशों के पास भेजा जाता था. विरोध करने पर एक लड़की को जान से मार कर इसी बालिका गृह में दफना दिया गया था.
बाद में ब्रजेश ठाकुर के चालक विजय की निशानदेही पर सीबीआई ने सिकंदरपुर शमशान घाट में खुदाई करवाई. यहाँ से लड़की का कंकाल बरामद हुआ.
फोटो से पीड़ित बच्चियों ने की पहचान
जिनके जिम्मे इन बच्चियों का संरक्षण था वही इनके साथ रेप करते थे. पूछताछ में पहला नाम ब्रजेश ठाकुर का आया जो इस बालिका गृह का संरक्षक था. लड़कियों ने फोटो के जरिए बाल कल्याण समिति के सदस्य विकास कुमार की भी पहचान की. विकास ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि मुजफ्फरपुर बाल संरक्षण के सहायक निदेशक दीवेश शर्मा भी इसमें शामिल थे. जैसे-जैसे जाँच आगे बढ़ी कई और रहस्य खुले। पुलिस ने जाँच में पाया कि इन सबका मास्टरमाइंड जिला बाल विकास समिति का अध्यक्ष दिलीप वर्मा था.
काउन्सेलिंग के नाम पर बच्चियों को हर मंगलवार बाहर ले जाया था जहाँ उनके साथ गलत काम होता था. बालिका गृह में काम करने वाली महिलायें भी आरोपी पाई गई. एक महिला लड़कियों को पॉर्न दिखाती थी. बाद में उन्हें नशे के इन्जेक्शन देकर बाहर बगीचे में ले जाया जाता था. वहाँ काम करने वाली औरतें भी बच्चियों के साथ गलत काम करती थी.
मंजु वर्मा को देना पड़ा था इस्तीफा
तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री और जदयू नेत्री मंजु वर्मा का नाम भी इस केस से जुड़ा. उनके पति और ब्रजेश ठाकुर के बीच नजदीकी संबंध थे. मंजु वर्मा को आलोचना का सामना करते हुए अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. जदयू ने उन्हें पार्टी से निकाल भी दिया था. बाद में विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार ने जमानत पर बाहर आई मंजु देवी को टिकट दे दिया था.
पटना हाई कोर्ट ने जाँच की जानकारी लीक होने का हवाला देकर मीडिया में मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की रेपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी. इस आदेश के खिलाफ एक स्थानीय पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बिहार राज्य सरकार और पटना हाई कोर्ट को नोटिस भी जारी किया था. 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में मीडिया रेपोर्टिंग पर पूरी तरह से रोक नहीं हैं. हालांकि इस से पहले 7 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया को यौन शोषण से पीड़ित किसी भी महिला का किसी भी रुप में फोटो छापने से मना किया था.
स्वयंसेवी संस्था ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ का राजनीतिक प्रभाव ऐसा था कि उसका फंड जारी करने के लिए नियमों को ताक पर रख दिया जाता था. 31 अक्टूबर 2013 को इस संस्था को पहली बार काम मिला. नियमानुसार हर तीन साल पर ऑडिट होने के बाद ही इसे फंड मिलना चाहिए था. बिना ऑडिट के ही इस संस्था को हर छः महीने पर 19 लाख रुपए का फंड मिलता रहा. हर साल पचास बच्चों के रख-रखाव के लिए 13 लाख 55 हजार 200 रुपये और कर्मचारियों और अधिकारियों के वेतन के लिए 14 लाख 200 रुपये का फंड भी मिलता रहा.
मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड जाँच में कब क्या हुआ –
26 मई को TISS की रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग को सौंपी गई. इसके बाद बिहार सरकार के द्वारा सभी लड़कियों को वहाँ से दूसरे सुरक्षित आश्रय गृह में भेजा गया. 31 मई को एसआइटी का गठन कर के पूछताछ की प्रक्रिया शुरू हुई। ब्रजेश ठाकुर समेत 11 लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराया गया.
14 जून को बिहार महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह को सील करवा दिया और 46 नाबालिग लड़कियों को वहाँ से बाहर निकाला. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए 2 अगस्त को केंद्र सरकार और बिहार सरकार से जवाब माँगा.
Tiss की रिपोर्ट आने के बाद कारवाई में देरी और कर्तव्य में लापरवाही के कारण तत्कालीन बिहार राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य कल्याण विभाग के 6 निदेशकों को निलंबित कर दिया. 8 अगस्त को तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री मंजु वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा.
सीबीआई ने 4 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट को बालिका गृह से लड़की का कंकाल मिलने की सूचना दी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के आश्रय गृह के ऐसे 16 मामले सीबीआई को दिए.
7 फरवरी 2019 को ये केस POCSO कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया गया. फिर जिला अदालत में सुनवाई शुरू हुई. सीबीआई ने पीड़ितों के द्वारा ब्रजेश ठाकुर के पहचान की बात की। सीबीआई ने ब्रजेश ठाकुर के द्वारा 11 लड़कियों के हत्या की भी बात कही. बिहार बाल कल्याण समिति ने दावा किया कि उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है.
निचली अदालत में 21 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को जाँच का आदेश देते हुए तीन महीने का समय दिया.
आदेश में होती रही देरी
इस बीच वकीलों के हड़ताल और जाँच से जुड़े न्यायधीशों के छुट्टी पर जाने के कारण कोर्ट के आदेश में देरी भी हुई.
8 जनवरी 2020 को सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वो मुजफ्फरपुर बालिका गृह में बच्चों से जुड़ी कोई भी सबूत नहीं जुटा पाई.
20 जनवरी को कोर्ट का आदेश आना था परंतु फिर से न्यायधीश के छुट्टी पर होने के कारण देरी हुई. आखिरकार 11 फरवरी को ब्रजेश ठाकुर समेत 11 अन्य आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
इसे भी पढ़ें :- बिहार को केंद्र से आवंटित यूरिया में से 38% कम की आपूर्ति हुई